नवगीत

 



कंजल अश्रुओं में घिरा ज्यों
केश सावनी लहराई ।


मौसम ने अंजुली भरे
देखो सौंपी स्वीकृतियाँ
सुगंध फैला गयी यहाँ 
आकर चंचल आकृतियाँ 


घुमा केश की गुंथित वेणी
लहर पावनी मुस्काई ।
कंजल अश्रुओं में घिरा ज्यों
केश सावनी लहराई ।


तंद्रा सी टूट गई क्यों 
यहाँ अनबोले तार की
अपनापन भी घोल गई
आज संध्या शनिवार की


गीत धमनियों के सुनते ही
बोली भावनी परछाई ।
कंजल अश्रुओं में घिरा ज्यों
केश सावनी लहराई ।


अनिता मंदिलवार सपना 
व्याख्याता जीवविज्ञान 
अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़


Popular posts
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
गाई के गोवरे महादेव अंगना।लिपाई गजमोती आहो महादेव चौंका पुराई .....
Image
दि ग्राम टुडे न्यूज पोर्टल पर लाइव हैं प्रो आराधना प्रियदर्शिनी जी हजारीबाग झारखंड से
Image
दि ग्राम टुडे न्यूज पोर्टल पर लाइव हैं रुड़की उत्तराखंड से एकता शर्मा
Image
दि ग्राम टुडे न्यूज पोर्टल पर लाइव हैं वरिष्ठ कवियत्री नोरिन शर्मा जी दिल्ली से
Image