चित्र पर आधारित रचना
उषा की प्रथम किरण के संग
नव संदेश ले दिनकर आता है
खगकुल गुंजन नवगीत मधुर
चर अचर सकल जग गाता है।
पौ फँटते ही श्रमवीर चले
निज कर्मो की लिखने गाथा
सजा बैल जोड़ी गाड़ी में
गीतों में सज मुखरित होती भाषा।
संतुष्ट अल्प सुख पाकर वो
दो रोटी की दरकार लिये
करते निशि वासर अथक कर्म
हृदय में परहित सेवा काभाव लिए
माथे से बहता स्वेद विन्दु
जब माटी संग मिल जाता है
होती है धन्य धन्य धरा भूमि
स्वर्ण अँकूर बन मुसकाता है।
कर्मवीर श्रमवीर से ही सजता
जग के आँगन का कोना कोना
हरी भरी लहराती फसलों को
देख हर्षित हो हरषाता है।
अन्नदाता है श्रमवीर है वो
परहित हित जीवन जीता है
करता है श्रमयज्ञ नित्यप्रति
परसेवा कर सुख पाता है।
मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर