जिंदगी के हँसीन पल कुछ वादों से जुड़े।
रात दिन मचलता है मन कुछ यादों से जुड़े।
कहाँ थी मंजिल मेरी अब कहाँ खिसक गई-
शकून की तलाश थी कुछ विवादों से जुड़े।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
जिंदगी के हँसीन पल कुछ वादों से जुड़े।
रात दिन मचलता है मन कुछ यादों से जुड़े।
कहाँ थी मंजिल मेरी अब कहाँ खिसक गई-
शकून की तलाश थी कुछ विवादों से जुड़े।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी