मुक्तक

 



(1)
अपने  मूड़ी,  अपने  डंडा, अपने हाथ पिटाई बा।
अपने  रस्ता  रोके,  खोले,  उतरे- चढ़े चढ़ाई बा।
अपने जोरे, अपने छोड़े, अनके धइ के नाम सदा;
मन का भीतर झँकनीं, पवनीं,खुद से सजी लड़ाई बा।


(2)
का बतिअइबS? अपने देखS 
छोड़S अमला-फइला के।
हाँफत, काँपत, भागत, दउरत
लोभे अइला, गइला के।
सोचि समझि के उड़S अकासे
मुँहखड़िए मति ढहे परे,
जे धरती पर कायम बाटे,
डर ना बा भहरइला के।


संगीत सुभाष,
मुसहरी बाजार,
गोपालगंज।


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