ख़ुदगर्जी न मेरी फितरत है

 



धोखा उसने दिया नहीं था
तुमने धोखा खाया था 
उसने प्रेम किया नहीं था
तुमको प्रेम हुआ था,अफ़सोस
जिस अविश्वास का बीजारोपण
ह्रदय पर अंकित हुआ था 
आज भी तुम उसी भूमि पर 
खड़े हो?


आज भी तुम दुनियाँ को 
उसी की निग़ाहों से देखते हो
घटित घटनाक्रम को उसी 
के नजरिये से तौलते हो
क्या वर्तमान को अतीत के
मानदण्डों की कसौटी पर
कसना उचित है?


ताज़्जुब है जिसने तुम्हारी ख़ातिर
सारे रिश्ते ठुकरा दिये आज
उसी बुनियाद को तुम
हक़ीर ठहरा रहे हो
जो तुम्हारी एक मुस्कान के लिये
अंधकार में ज़मीदोज हो गई
उसपर ख़ूदि का इल्जाम 
लगा रहे हो ,


ख़ुदगर्जी न मेरी फितरत है
न मेरा लिबास
आँखो से शिकस्त दिली का
चश्मा उतार कर देखना मैं
तुम्हारे वजूद का हिस्सा
 थी हूँ और रहूँगी...
 
 कुसुम तिवारी झल्ली


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