"यूँ तो हांसिल हर 'मुकाम' और 'खुशी' बहोत..
पर जाने क्यों 'सब्र' ही नहीं होता,
यूँ तो किया फतेह' मीनार और किला हर एक..
पर जानें क्यों 'फख्र' ही नहीं होता,
यूँ 'मसरूफ' ऐसा के 'पल' की 'मोहलत' नहीं..
पर जाने क्यों वक़्त 'गुज़र' ही नहीं होता,
बस कंडक्टर सी हो गयी ज़िन्दगी 'दीपक'..
जाना भी कहीं नहीं, खत्म 'सफर' भी नहीं होता"
जैन दीपक