नेह अगाध उर में समाये,
धारण करती पीड़ाओं को।
भरती फिर नव प्राण शिशु में,
भूलना मत क्रीड़ाओं को ।
भ्रमित नहीं होना शिशु मेरे,
तुझपर मां की अनुकम्पा है।
जब तक धात्री इस जग में,
हर दु :ख उससे शर्मिन्दा है।।
आलिंगन में बंध मन उसका,
परिपाटी नव प्रेम सीखता है।
रीता मां मेरा जीवन बिन तेरे,
शिशु मां से बस यह कहता है।
नहीं प्रेम की भाषा कोई,
फिर भी प्रेम अनन्त करें ।
नहीं विश्लेषित रिश्ता ये प्रेम का,
मां सबसे प्रेम अनन्त करें ।।
आज नियति के द्वारा फिर ,
ममता मां की छली गई।
छोड़ निरीह अबोध बालक को,
मां अन्तिम प्रयाण पर चली गई।।
मां बिन कैसा जीवन में,
यह नन्हा शिशु रह पायेगा।
क्या उस परम प्रभु को भी,
उसपर तरस न आयेगा ।।
कष्ट हज़ारों दे देना पर ,
मां की गोद छीनना मत ।
मां है तो जीवन इस जग में,
मां को है नमन शत शत ।।
रंजना शर्मा
सर्वाधिकार सुरक्षित
स्वरचित
रंजना शर्मा ✍️