कह-मुकरी

 



1)फर-फर, फर-फर उड़ती जाए,
   रंग-बिरंगे रंग चमकाए,
   सबके मनको भी हर्षाये,
   का सखि बिजली.?
    न सखि तितली..!!
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2) उमड़-घुमड़ कर मन डरवावे,
     घनन-घनन-घन शोर मचावे,
     सखियों का भी मन घबरावे,
     क्या सखि बन्दरा..??
     न सखि बदरा..!!
#########
3) देखे सारा तन कर अर्पण,
    दिखलाए सच्चा चित्रांकन,
    हो जाये हर्षित फिर तनमन
    का सखि साजन..?
     न सखि दर्पण..!!
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स्वरचित अर्चना भूषण त्रिपाठी,"भावुक"


नवी मुम्बई मूल निवासी (प्रयागराज)


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