मैंने चाहा
कि एक बीज बो दे वो
मेरी कोख़ के आँगन में
और मैं दुनिया को दे सकूँ
मुहब्बत के वृक्ष
इश्क़ के फूल
और प्रेम के फल
दो देहों से नहीं खिलते
फूल
कौपलें
कलियाँ
प्रेम बोकर
प्रेम से सींचें गए
पौधे ही बनते हैं
वट वृक्ष
कल्प वृक्ष
जबसे प्रेम की जगह
स्वीकृत रिश्तों ने
पाँव पसारे
बरगदों ने जड़ें फैलाना
बंद कर दिया है
मीरा कृष्णा