गीत--

 



मन की वीणा के अब तार बजते नहीं


मन की वीणा के अब तार बजते नहीं,
भाव हृदयों बस आवरण हो गया.!!


शाम सिंदूरी अब रोज आती है पर,
प्रेमगीतों का मेरे क्षरण हो गया..!!


मन की वीणा के अब......


दिव्य वातावरण हर दिशाओं में है,
मन के उल्लास का पर हरण हो गया.!!


मन की वीणा अब.........


चांद इतराता है देख कर के मुझे,
नींद का जब से मेरी मरण हो गया.!!


मन की वीणा के अब........


चांदनी भी मुझे अब चिढ़ाने लगी,
जैसे उसका ही सारा गगन हो गया.!!


मैंने की वीणा के अब....


आंखें पथरा गई झांकती में रही,
बेवफा इस कदर जो सजन हो गया..!!


मन की वीणा के अब.....


कोई आता नहीं कोई जाता नहीं,
दिल मेरा टूटा अब खंडहर हो गया..!!


मन की वीणा के अब......


एक सन्नाटा छाया है चारों तरफ,
मेरे जीवन का सूना शहर हो गया.!!


मन की वीणा के अब...


नीद बुझ सी गई मेरी आंखों में ही,
ख़्वाब सांसों का मेरे जहर हो गया.!!


मन की वीणा के अब तार बजते नहीं,
भाव हृदयों का बस आवरण गया..??


स्वरचित अर्चना भूषण त्रिपाठी "भावुक"@


नवी मुंबई मूलनिवासी (प्रयागराज)


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