वो है खाब मेरा हकीकत नहीं है
मेरी ज़िंदगी की जरूरत नहीं है।
खुदा क्या तेरी हम रवायत नहीं हैं
की जो हमने पूजा इबादत नहीं है।
अभी छोड़ दो बात बीते दिनों की
वो थे शौक मेरे प आदत नहीं है।
बड़ी बेरहम है हकीकत की दुनिया
यहाँ हसरतों की हिफाजत नहीं है।
शहद से भी मीठी हैं बातें तुम्हारी
कहूँ मैं कैसे की मुहब्बत नहीं है।
मुहब्बत की शिद्दत वो समझेंगे कैसे
निगाहों में जिनके ज़हानत नहीं है।
स्वरचित
अर्पना मिश्रा