एक दिन ऐसा आयेगा ...
मैं हाथों मे हाथ भर जाऊँगा ...
तुम खोले रखना मुट्ठी अपनी ..
मै लकीरें तुम्हारी पढ़ जाऊँगा ..
कुछ अल्फ़ाज़ अपने दे दूँगा ...
कुछ शब्द तुम्हारे ले लूगा...
तुम खोले रहना लब अपने...
मै भावों मे बस जाऊँगा ....
एक दिन ऐसा आयेगा ...
मैं हाथों मे हाथ भर जाऊँगा ...
एक दिन ऐसा आयेगा ...
जब बीता हुआ बीत जायेगा ...
‘नवेली’ तुम होगी ,'नई’ सा मै ...
तब खुली किताब बन जाना तुम ...
कहना तुम ,कहते रहना तुम...
मै क़लम तुम्हारी बन जाऊँगा ...
एक दिन ऐसा आयेगा ...
मैं हाथों मे हाथ भर जाऊँगा ...
एक दिन ऐसा आयेगा ...
जब शब्द गौण हो जायेंगे ...
कहना सुनना खूब हो चुका....
अब हाव भाव बतियायेंगे ....
ना कहना होगा तुम को कुछ...
ना मै ही कुछ कह पाऊँगा ...
खामोशी की भाषा होगी ...
नित नई जिज्ञासा होगी ...
हम-तुम,तुम-हम एक होगें...
बन जाना तब ‘पार्वती’तुम...
मै ’शिव’ बन जाऊँगा....
एक दिन ऐसा आयेगा ...
मैं हाथो मे हाथ भर जाऊँगा ...
तुम खोले रखना मुट्ठी अपनी ..
मै लकीरें तुम्हारी पढ़ जाऊँगा ..
मनोरमा सिंह