दोहा गीत

गाँव वापसी कर रहे, मेहनती मजदूर


 पर ही चल रहे ,पग पग ही अति दूर।
गाँव वापसी कर रहे,मेहनती मजदूर।


रोजी रोटी के लिए ,छोड़ दिया घर-बार
आई ऐसीआपदा, मचता हाहाकार।
देख आदमी डर रहे, आया यह तूफान।
किसने सोचा आ पड़े,ऐसा वक्त भी जान।


कहते तभी सुजान हैं, मत करो तुम गुरुर।
गाँव वापसी कर रहे ,मेहनती मजदूर।



देश नहीं परदेस भी, कोरोना जंजाल।
रक्तबीज  सा बढ़ रहा,इसका यही कमाल।
अब जाना है गाँव में,छोड़ शहर का काम।
अपनो के ही साथ मे,मिलता है आराम।


आये अब क्यों सोचते,मजदूरी को दूर।
गाँव वापसी कर रहे,मेहनती मजदूर।



विपदा में ही देख लो, आते अपने याद।
ढूंढते फिरे कौन है,हर ले जो अवसाद।
वापस लौटो मन कहे, पहुँचो अपने गाँव।
याद बड़ी है आ रही,पीपल की वह छाँव।


तन तो घायल है बड़ा,मन भी दुख से चूर।
गाँव वापसी कर रहे ,मेहनती मजदूर।।
रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर सी जी


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