दिल में इक लहर सी उठाए तो कोई
नीयत- ए -शोख़ से जगाए तो कोई
ज़हर ही ज़हर भरा है सीने में
जिंदांने -शवे- तार से बचाए तो कोई
तरस गया हूँ कब से खुद को मिलने को
मुझको कभी मुझसे ही मिलाए तो कोई
तमन्नाऐं मर चुकी फिर भी तमन्ना हैं
अरमान जगाए कोई मुझको बहलाएं तो कोई
मेरा कोई नही फिर भी पुकारता रहता हूँ
मेरी इस उलझन को सुलझाए तो कोई
दिल के जख्मों पे चोट खाए हुए हूँ
दिल की पीड़ा को और बढ़ाए तो कोई
अशोक कीर्ति