दरकती दरख़्त की छाल
मनुज के हृदय पटल का
खाका खींचती रेखाएं,
कुछ, टेढी मेढी कोटरों में
पुराने पंछियों के बसेरे,
मनुज स्मृतियों के किले,
कुछ, झरते शाख के पत्तों से
कुछ, स्थाई दरख़्त की जड़ से
नई आशा की बैसाखियां
कोंपलों के रूप में,
मजबूरी की शाख से लिपटी
मनुज काल के नित नए बंधन
थोपे हुए से कुछ,
नई बेलों के सहारे के
रूप में खडा दरख़्त,
कुछ, मनचाहे गम पीता हुआ,
विराट वृक्ष सा मनुज हृदय
फूलों की प्रतीक्षा में
बरस हो चले खड़े खड़े
मनुष्य जयूं करता रहा हो,
जैसे खुद को मिटा
नव पीढी का संचार।
डॉ. मेघना शर्मा
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