चलो घूम आए

 



क्यूं दिल  मेरा जलाते हो जले पर नमक लगाते हो।
जो होना संभव ही नहीं है घूमने के ख़्वाब दिखाते हो।


विश्व पर आया भारी संकट  लगी नज़र ना जाने किसकी?
खुशियों के दिन बीत चले अब भुगते सजा हम जाने किसकी?


कौन करे और कौन भरे दिखता चरितार्थ कहावत
कैद घरों में सजा झेल रहा  समझ कछु ना आवत


उम्र सजा के कैदी को क्यूं रिहा  के ख्वाब दिखाते हो
जले हुए ज़ख्मों पर  क्यूं  तुम मिर्ची नमक  लगाते हो।


घर से निकल के छत पर जाती गमले के पौधों से बतिआती 
कोमल नेह स्नेह से उनको बड़े प्रेम से हूं  सहलाती।


पा कर कोमल मेरा  स्नेह वो झूम झूम इठलाते।
लेकिन वो बेचारे भी  मेरा दर्द समझ ना  पाते।


प्रकृति के सजा से जीवन हुआ है अस्त व्यस्त अब।
बाहर जाएं मौज मनाए ये सपना हुआ है ध्वस्त अब।


बस लाईव आ कर मंचों से मिलना जुलना होता।
प्यारी प्यारी सखियों से अब  वहीं गुटर गूं  होता है।


भूल गए सब चाट पकौड़ी इमली के गोलगप्पे।
पिज्जा बर्गर डोसा इडली  साथ में  मीठे गप्पे।


खुला नहीं कोई ब्यूटी पार्लर चिंता यही सताए।
सूट साड़ी की बात करूं क्या  घर में बैठ साधाएं।


गैरेज में गाड़ी सिसके और अलमारी में साड़ी।
हवा का सैर भी बन्द हुआ लागे दुर्लभ रेलगाड़ी।


केवल मेरी व्यथा नहीं है सबका हाल यही है।
मेरे जैसा आप सभी भी अपनी व्यथा सुनाएं।


भूल चुकी जो बात उसी की फिर क्यूं याद दिलाते हो
चलो #घूम के आए कहीं से कह  के मुझे सताते हो।
* मणि बेन द्विवेदी


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