कवि लेखक देवकी दर्पण"रसराज" का व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व

 



..........आर.सी. आदित्य
        इतिहास प्रसिद्ध बून्दी जिले का रियासत कालीन गांव "रोटेदा"जो कि कोटा और बून्दी की सीमाओं का निर्धारण करने वाली और इन दौनो जिलों की जीवन आधार माँ चर्मण्यवती अर्थात चम्बल नदी के पश्चिमी तट पर सदियों से आबाद है "रोटेदा गाँव"
      एक जुलाई1976में देवकी नन्दन शर्मा का जन्म एक साधारण ब्रह्मण(पुजारी)परिवार में हुआ।स्वर्गीय रामनाथी बाई की खोंख से पिताश्री स्व.गजानन्दजी शर्मा के घर आँगन को आपने सुशौभित किया।
    परम्परा से पूजा पाठ और धर्म कर्म में रंगा चंगा परिवार, जहाँ हमेशा कथा कहानियाँ और धार्मिक आध्यात्मिक चर्चाऐं होती हो;आपके पिताश्री न केवल धार्मिक ग्रंथों के पाठक थे अपितु शास्त्रार्थ में भी दक्ष थे, यहाँ से आपको बहुत कुछ सीखने को मिला।
     आपका गांव पंचायत स्तर का छोटा कस्बा होने से, हिन्दू मुस्लिम धर्मावलंबियों सहीत सभी जाति वर्ग समुदाय के लोग समान रूप से निवास करते हैं।
    रोटेदा आपकी जन्मभूमि न केवल आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से सम्पन्न है बल्कि भौगोलिक दृष्टि से आपका रोटेदा खास पहचान रखता है। मेरी जानकारी के मुताबिक कोटा बून्दी को जोड़ने वाली दूसरे नम्बर की रियासत कालीन सड़क, जो कापरेन से रोटेदा चम्बल पार मण्डावरा बूढ़ादीत होते हुए बड़ौद नामक कस्बे में कोटा श्योपुर सड़क में समा जाती है।
  सौभाग्य से ये दौनों सड़के आज हाईवे में तब्दील हो चुकी है।
   रोटेदा सड़क का डामरीकरण हुए अभि 15-20साल से ज्यादा नहीं हुआ पर ये सच है कि कच्ची सड़को पर भी मोटर कारे और दरबार के लाव लश्कर दौड़ा करते थै।जब तक चम्बल में पुलिया नहीं थी तब तक नाव से नदी पार किया जाता था।नदी के दौनो तट रेतिलै होने से यहाँ का सौन्दर्य मनभावन  मनोहारी प्रतीत होता है।
   यहाँ से गुजरने वाले तमाम यातायात के संसाधनों के प्रयोग उपयोग और आपकी पैनी नज़रों ने आपकी बहुत मदद की है।आपके व्यक्तित्त्व और कृत्तित्त्व पर इस भौगोलिक परिवेश की गहरी छाप है।
  जिज्ञासु और धार्मिक प्रवृत्ति होने से गाँव और पड़ौस के गाँवों में होने वाले खैल तमाशे रामलीलायें देखने सुनने और जागरण आदि में अपनी प्रस्तुती देनेंमें आपकी गहन दिलचस्पी रही है,बाल्यकाल से ही आप इन खैल तमाशों सामाजिक धार्मिक जलसों से बहुत कुछ सुखते आ रहे हैं।
 जिला मुख्यालय बून्दी से कौसों दूर होने से आपके गाँव तक विद्युत, आधुनिक शिक्षा और इन्टरनेट टेक्नोलोजी आदि देर से पहुँच पायी ;किन्तु उपलब्ध संसाधनों और वातावरण में जो कुछ श्रेष्ठ था उनका उपयोग करते हुए ढोलक हारमोनियम बजाते कीर्तन भजन गाते, कहानी किस्से सुनते और सुनाते आपने स्थानीय विद्यालय से दसवी तक की शिक्षा प्राप्त की।इस बीच आप अपने छात्र जीवन में अपने विद्यालय के मंच से कोर्स की कविताओं काभी सस्वर वाचन करते थे।
  इसी बीच पारिवारिक परिस्थितियाँ और जिम्मेदारियों के बोझ के चलते आपआगे की पढ़ाई नहीं पढ़ सके।
   पर देवकी हिम्मत हार नहीं है
आप अभि पढ़ रहै हैं धीरे धीरे शिक्षा की सीढ़ियाँ चढ़ रहैं हैं, ओपन शिक्षा से ग्रेजुएशन कर रहे हैं।आपके कथनानुसार नवी कक्षा तक मैने कोई कविसम्मेलन न देखा न सुना पर गाँव में कविसम्मेलनों के रसिक श्रोता थे जो कोटा, कापरेन केशवराय पाटन आदि के कविसम्मेलन सुनने जाया करते थे।पहली दफा जब आप नवी के विद्यार्थी थे कापरेन में अखिलभारतीय कविसम्मेलन सुना तो मन में एक उत्कंठा पैदा हुई कि ऐसा तो मैं भी कर सकता हूँ।
   बस फिर क्या था धुन के पक्के भाई देवकी दर्पण ने कविताऐं लिखना पढ़ना शुरु किया, सुरीला कण्ठ होने से आप श्रोताओं को प्रभावित करने में कामयाब़ रहे।
   इस प्रकार माँ चर्मण्यवती की लहरों में तैरते इसके रैतिले आँगन में खेलते कूदते कांकड़ी खरबूजे और मतीरों का रसास्वादन करते करते खेत खलाण ग्रामीण जन जीवन का उपभोग करते हाड़ौती संस्कृति सभ्यता और ग्रामीण जन जीवन पर गीत लिखने का अभ्यास करते करते एक दिन यह कवि भाई "देवकी "सन् 2000के आस पास मेरे गाँव "बूढ़ादीत" के वीर तेजाजी मेले के शुभ अवसर पर रा. उ.मा.वि. बूढ़ादीत के मंच पर प्रकट हुआ।
कोटा संभाग की सशक्त टीम आदरणीय मुकुट मणिराज जी के संयोजन में इस मंच पर सुशौभित थी। प्राचीन सूर्य नगरी बूढ़ादीत और क्षेत्रीय श्रोताओं से खचाखच भरा ग्राउण्ड चाहे जिसको उठा दे चाहे उसको बैठा दे।
मेरे गाँव के श्रोता किसी को तन मन से सुनले और वन्स मौर कर दे मानलो उस कवि का भविष्य उज्जवल है।
 * मत टाल ज्यो जी पिया संकर्यांत तां सू म्हानै आशा घणी
 इस गीत को सुनते ही वाह वाह और सैंकड़ौ श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहठ ने इस कवि को जीवन के प्रथम कविसम्मैलन में ही सर्टीफाई कर दिया वन्स मौर की मांग उठने लगी मैं इस घटनाक्रम का प्रत्यक्ष दर्शी था क्योंकि मैं कविसम्मैलन आयोजन समिति का मेम्बर था।
न केवल मुकुट मणिराज जी ने अपितु उपस्थित सभी कवियों ने 
भाई देवकीकी पीठ थपथपाई और मंच से उतरने के बाद हमने भी आपको शाबाशी दी।
 जब कोई कवि अपने प्रथम कविसम्मेलन में अपनी कविताओं से सैंकड़ौ श्रोताओं को तालियों के लिए मजबूर करदे तो मेरा मानना है कि दुनियाँ की कोई  ताक़त नहीं है जो ऐसै कवि की राह का रौड़ा बन सकै।
  आज यह कवि जिस मुकाम़ पर है जिस मंजिल की सीड़ियों पर है ,मुझे फक्र है कि मैरा गाँव "सूर्य नगरी बूढ़ादीत" आपकी मंजिल का आधार स्तंभ के रूप उल्लेखनीय रहेगा।
और साथ में साहित्यिक गुरुवर सी.एल सांखला साहब की जन्मभूमि और आप ससुराल टाकरवाड़ा दूसरे स्तंभ के रूप में जाना जायेगा।
     दो भाई और तीन बहिनों में सबसे छोटे भाई देवकी सहज सरल, खुशमिजाज़ चतुर बुद्धिमान जागरूक़ और व्यवहार कुशल भाई देवकी दर्पण हँसमुख और मिलनसार व्यक्तित्त्व के धनी है।
                  कृतित्त्व
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  बूढ़ादीत कविसम्मैलन के बाद लेखन के प्रति आपकी रूची बढ़ी तो आपने उत्तरोत्तर आगे बढ़ने का प्रयास किया क ई कविसम्मेलनों में आपने काव्य पाठ किया।
   देश प्रदेश के राजस्थानी और अखिलभारतीय मंचो पर काव्य पाठ करते हुए देश प्रदेश के ख्यातनाम कवियों के बीच अपनी मायड़ भाषा हाड़ौती में  गीत और व्यंग्यों से आपने अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहै।
   एक दिन प्रातः स्मरणीय श्रद्धैयगुरुदेव श्री श्री 1008 महामण्डेश्वर महंत श्री रामस्वरूपदास ब्रह्मचारी जी के आश्रम तेरह भाई त्यागी खालसा हनुमान वाटिका वृन्दावन में आपकी भेंट वरिष्ठ अध्यापक स्व.लक्ष्मीनारायण मालव साहब से हुई जो हिड़ौती भाषा के सशक्त हस्ताक्षर के रूप जाने पहचाने जायेंगे मालव साहब की हाडौती गीतों की कृति कांकड़ गरद गुलाल प्रकाशित है।
  टाकरवाड़ा निवासी स्व.लक्ष्मीनारायण मालव साहब ने आपको ख्यातनाम साहित्यकार, समीक्षक हमारे साहित्यिक गुरु परम आदरणीय सी.एल. साँखला साहब से मिलने का सुझाव दिया।
संयोग देखिये कि आपका ससुराल भी टाकरवाड़ा ही है जहाँ साँखला साहब का निवास
शब्दवन टाकरवाड़ा है
इसलिए आपको साँखला साहब से मिलने में अलग से परिश्रम नहीं करना पड़ा, जो कुछ लिखा साँखला जी से जंचवाया।
 आदरणीय साँखला जी का जीवन साहित्य को समर्पित है आपकी टीप्पणियाँ छोटे से छोटे कलमकार में साहित्यिक उर्जा पैदा करने की कुव्वत रखती है;आपके शब्द शब्द में ब्रह्म के दीदार होते हैं।
    कहते हैं जहाँ चाह वहाँ राह, धीरे धीरे देवकी नन्दन शर्मा का परिचय "राष्ट्रीय शिक्षक रचनाकार प्रगति मंच "के बैनर तले सूर्य मन्दिर बूढ़ादीत में होने वाली काव्य गोष्ठियों में क ईं कवियों और कलमकारों से हुआ जिनमें -सर्व श्री महावीर मालव, रामस्वरूप रावत, चतुर्भुज मालव टाकरवाड़ा तथा सत्य प्रकाश पेन्टर(S.P.Arts.)धनराज टांक, मुकुटबिहारी मीणा, परमानन्द गौस्वामी और आर. सी. आदित्य. बूढ़ादीत निवासियों से बड़ौद से भाई लटूरलाल मेहरा आदि आदि।
   अंता क्षेत्र से स्व.गिरधारी लाल जी मालव, विष्णु विश्वास, दिनेश मालव, पवन गौतम आदि आदि।
  झालावाड़ से शिवचरण सेन शिवा, प्रकाश सोनी यौवन, जगदीश झालावाड़ी आदि से आपका परिचय का दायरा बड़ता रहा;इन्ही गोष्ठियों में आपने अपने मित्रों भाई मनोज सोनी, महावीर धन्वन्तरी, पुष्कर चौधरी, प्रेमजी मेघ आदि से परिचय करवाया मित्रता का दायरा बहुत बड़ा है ।
आपके मिलनसार व्यक्तित्त्व ने आपको काव्यपथ पर आगे बढ़ाने में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
   सूर्य मन्दिर बूढ़ादीत के "राष्ट्रीय शिक्षक रचनाकार प्रगति मंच"के सालाना जलसे में आपका परिचय ख्यातनाम कवि बाबा जितेन्द्र निर्मोहीं जी, विजय जोशी जी, डॉ.ओम नागर, चन्दालाल जी चकवाला जी ,माताजी कमला जी कमलेश ,राजस्थान साहित्य अकादमी के सचिव राजेन्द्र बारहठ आदि साहित्यकारों से आपका परिचय बढ़ता चला गया इन सबके सम्पर्क सामिप्य से आप लेखन के गुर सीखते रहे।
 हम दौनौ गुरु भाई कहीं कविसम्मैलनों में साथ रहे खूब चर्चाऐं की, एक दिन मैने आपको पुणे महाराष्ट्र से निकलने वाली साप्ताहिक साहित्यिक पत्रिका  "सीधी बात" की एक प्रति आपको भेंट की जिसमें कईं पत्र पत्रिकाओं के प्रकाशन पते की सूची प्रकाशित थी
  हम सीधी बात के बहुत बहुत आभारी हैं जिसने न केवल हमारी कविताऐं निशुल्क प्रकाशित की बल्की अन्य प्रकाशनों की सूची भी उपलब्द करवाई।
इसी बीच आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी आपकी कविताओं का प्रसारण होता रहा है।
इस बीच
आपकी काव्य कला प्रभावित होकर आदरणीय साँखला साहब और मान्यवर मुकुट मणिराज जी ने आपको देवकी नन्दन शर्मा से
"देवकी दर्पण रसराज"की पदवी से विभूषित किया जा चुका था।
   इसके बाद आपने मुड़कर नहीं देखा, देश के कौने कौने से निकलने वाली साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में आपकी रचनाऐं प्रकाशित होती रही आपका होंसला परवान चढ़ता रहा।हिन्दी और राजस्थानी में आप समान रूप से लिखते रहे साहित्य की लगभग सभी विधिओं में आपकी कलम निर्बाध गति सेचल रही है।
 पद्य में-कविता, नवगीत, गीत, हाईकू, दोहा, छन्द, तुकान्तिका, गजल क्षणिकाऐं, मुक्तक, इत्यादि।
गद्य में-व्यंग्य, कहानी, संस्मरण, शब्द चितरामलेख, आलेख, यात्रा वृतान्त, ललित निबन्ध, समीक्षा इत्यादि।
इनके अलावा आपकी अभिरूचियाँ स्वध्याय ,संगीत,वाद्यवादन, अभिनय, पर्यटन इत्यादि में समान रूप से हैं।
  यहाँ मैं उन प्रमुख पत्र पत्रिकाओं का उल्लेख करना चाहूँगा जिनमें आपकी रचनाऐं प्रकाशित हुई जिन्होने आपका मनोबल बढ़ाया
इनमें कोई दैनिक,साप्ताहिक, पाक्षिक, और कोई मासिक है।
"सीधी बात"पुणे महाराष्ट्र, शुभ विचार उज्जैन, धौल पुर चित्रण, सिमाजिक आक्रोश सहारणपुर,
साहित्य भारती झुन्झुनू, रश्मी रथी उत्तर प्रदेश, जागती जोत बिकानेर, नैणसी कलकत्ता,स्मारिका बून्दी, नालन्दा दर्पण नालन्दा, माणक जोधपुर आदि आदी सैंकड़ौ पत्र पत्रिकाओं ने आपके लेखन को प्रकाशित किया है।
  भाई देवकी दर्पण रसराज की अब तक की प्रकाशित राजस्थान और हिन्दी की कृतियाँ जिन पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
1."अमरत को धोरो",राजस्थानी काव्य कृति प्रकाशन वर्ष 2006
2."मेघमाल"हिन्दी काव्य कृति2007
3."कांकरी घून्दता पग" जातरा वृतान्त राजस्थानी काव्य कृति 2013
4."क्है चकवा सुण चकवी"राजस्थानी लोक कथा संग्रह2018
आगे आने वाली अप्रकाशित कृतियाँ
यात्रा वृतान्त, राजस्थानी दोहा संग्रह, च्यार चटकां, शब्द चितराम आदि।
आपका राजस्थानी और हिन्दी में समान रूप से अनवरत लेखन क्रम जारी है।
                  सम्मान               
आपके उत्कृष्ट सृजन और काव्य कला से प्रभावित होकर कईं संस्थाओं नें आपको सम्मान से नवाज़ा है--
1.डॉ.अम्बेडकर फेलोशिप2007
2.पराविद्या अन्तर्राष्ट्रीय सम्मानोपाधि संस्थान उ.प्र.द्वारा काव्य सरस्वती की मानद उपाधी से अलंकृत.
3.अखिल भारतीय साहित्य संगम उदयपुर द्वारा"काव्य कदम"से विभूषित.
4."राष्ट्रीय युवा रचनाकार सम्मान"रा.शि.र.प्र.मंच बूढ़ादीत टाकरवाड़ा द्वारा सम्मानित
5."दुष्यन्त सम्मान "खण्डवा से सम्मानित
6."साहित्य भूषण "कटनी  m.p.से सम्मानित
7."ब्रज गौरव"मथुरा से सम्मानित
8.शिक्षा साहित्य एवं कला परिषद द्वारा"भारत श्री"की उपाधी से विभूषित
9.साहित्य साधना मंच सिहोरm.p.द्वारा
प्रशस्ति-पत्र  सम्मान
इनके अलावा भी कईं मंचो पर आपको प्रतीक चिन्ह, शाल, श्रीफल,साफा और माल्यार्पण आदि से सम्मानित किया गया।
और इसी श्रृंखला में आज का
"आर्यावृत रत्न2020"से विभूसित होने पर सम्मान रूपी मणि माल में एक ओर रत्न जुड़ गया है जिससे दर्पण की चमक ओर अधिक चलका मारती दिखाई देगी।
 लेखन और काव्यपाठ के साथ साथ आप कईं अन्य जिम्मेदारियों का भी बखूबी निर्वहन करते आ रहें है-
1.सचिव राष्ट्रीय शिक्षक रचनाकार बून्दी
2.अध्यक्ष राजस्थानी भाषा संघर्ष समिति तह.पीपल्दा जिला कोटा
3.मण्डल कार्यवाहक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
  कवि लेखक भाई देवकी दर्पण की अब तक की प्रकाशित कृतियों पर संक्षिप्त जानकारी


"अमरत को धोरो"
राजस्थानी काव्य कृति प्रकाशन वर्ष 2006
राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बिकानेर का सहयोग सूँ प्रकाशीत
दो टूक में आप स्वयं लिखते हैं--
कांई गरीब गुरबां का उभाणा बालकां नै टकती सूरज की ला सूं पगतलयांन मं भलसणी न्ह लागै,जद बड़ा मिनखा का बालक पंखा मं झकरा ज्या छै।य्हा माह पोष का जाड़ा मं भी फाटी गोदड़ी में धूजता दलितां'न का बालक समै पै मल जावै जी अडगालया में पैडा'न के नीचे चौमासा का झड़ काटता, जद म्हसूं कविता क्है छै कै लिख य्हाँ को दरद य्हां मं भी तो प्राण छै।कलम चालती री।
लेखक क्या कहना चाहता है, उपर्युक्त पंक्तियों में लेखक ने अपने मन की पीड़ा को अभिव्यक्ति दी है।
   गहरे उत्साह से तैयार की गयी राजस्थानी गीत गजलों की इस पोथी में कईंपर प्रेम की पीर दिखाई देती है तो कईं पर माँ की ममता, क ईं पर बहीन का दर्द है तो कईं पर चन्द्रवदनी के नयनों का मायाजाल, कहीं पर गरीबों की दुर्दशा का चित्रण है तो कहीं पर शासकों का शोषण इस कृति में सामाजिक कुरीतियों पर भी तगड़ा प्रहार किया गया है।सामाजिक और प्रशासनिक विसंगतियों पर प्रखर स्वर में कवि अपनी पीड़ा व्यक्त करता रहता है।
तमाम विरोधी स्वरों के बावजूद कवि अपना राष्ट्र चिन्तन नहीं भूलता है।
इस पुस्तक में कवि अपनी देश भक्ति के स्वर यों प्रकट करता है--


*म्हूं बालक मोट्यार बण्योरी माई थारा दूध सूं
भगत सिंह सरदार बण्योंरी माई थारा दूध सूं*


मृत्यु भोज पर कटाक्ष करते हुए कवि लिखता है----


*न्ह करूं ज्यै नुक्तो माई बाप को
काना फूसी गांव करे छै* 


महिला शिक्षा का समर्थन करते हुए कवि लिखता है--


*खा लेगा जी खुद ही कमा'र बाई सा न्ह पढ़बा द्यो
आ जावगो जी घणों सुधार बाईसा नै पढ़बा द्यो* 


भ्रष्टाचारी और झूठी सौगन्ध सपथ लैने वाले नेताओं कीकुटिलता को कवि यों उजागर करता है-


*घणा पपौल इलट होर चुणावा मं
खोले छै गुड़ देर'र कडुल्यो बोटां को
फैरु आग्या लेर' टपारों नोटा को*


इस काव्य संग्रह की तमाम रचनायें छन्द बद्ध है; तुकान्त का प्रयोग सटीक है, ठेठ राजस्थानी हाड़ौती शब्दों का प्रयोग सराहनीय है।
कवि की पहली कृति  सार्थक है।


अमरित को धोरो के विमोचन के बाद कवि देवकी दर्पण रसराज बड़े बड़े साहित्यकारों के बीच उठने बैठने लगा तो मानो कवि के पंख लग ग ए हों भाई देवकी बहुत तगड़ी उड़ान भरने लगा अगले ही वर्ष 2007 में राजस्थानी साहित्य अकादमी उदयपुर के आर्थिक सहयोग सूं प्रकाशित
     "मेघमाल 'हिन्दी कविता संग्रह प्रकाशन वर्ष 2007
अपने दो शब्दों में कवि स्वयं लिखता है -*कवितायें लिखना सांखला साहब से जंचवाना उनकी रचनाऐं पत्र पत्रिकाओं पढ़ना एक शौक हो गया था तब में अपनी रचनायें छपवाने के लिए तरसने लगा था।उन्होने मुझे प्रकाशन के लिए सुलभ प्रकिया बताई, उनसे देश भर के पत्र पत्रिकाओं के पते और प्रकाशको की सूची लेकर नियमित कविताऐं प्रकाशन हेतु पोस्ट करता रहा, "सीधी बात"पुणे महाराष्ट्र और शुभ विचार उज्जैन से जब कविता जब पहली बार कविता छपकर आई तो मन मयूर नाच उठा।
नियमित लिखने का सिलसिला चल निकला।
मुझे विश्वास था कि एक दिन
 रचनाओं का प्रकाशन होगा और वह विश्वास आज मेघमाल कृति के रूप में यह काव्य संकलन आपके हाथों में हैं।*
     पुस्तक की भूमिका में मुम्बई के वरिष्ठ साहित्यकार मधुकर गौड़ साहब लिखते हैं-----दर्पण मौन होकर भी सब कुछ सच सच बोल देता है 
इस संकलन के रचियता भी दर्पण है अपने नाम से और साथ में रसराज भी, अनेक बिम्बों कथ्यों से जुड़े उनके रचना बिम्ब है इस संकलन में।
      अनेक स्थानों पर उन्होने बड़े सजीव चित्र प्रस्तुत किए हैं, वे निरन्तरता पहने हैं।इसी आस्था के साथ ये मेरी पंक्तिया---:
खिलते हुए को तोड़ना मुश्किल तो नहीं है
बिखरे हुए को जोड़ना कोई और बात है।


    इस कृति की भूमिका में गुरुवर सी. एल. साँखला साहब लिखते हैं:----
    साहित्य में जितना सृजन कविता के रूप में मिलता है उतना अन्य किसी भी विधा में नहीं मिलता रचने में तो कहानियाँ भी प्रचुर मात्रा में लिखी गयी पर काव्य-सागर अथाह है, अपभ्रंश प्राकृत और संस्कृत साहित्य में भी कविता का विपुल भण्डार है।शायद ही दुनियाँ की कोई ऐसी भाषा हो जिसमें कविता न लिखी गयी हो।
    इसलिए कहा जा सकता है कि कविता भाषा से भी बड़ी चीज है।जब जब कवितायें छन्दों के बन्धनों से आजाद होती है तब वह अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट होती है।
    संवेदनशीलता, भावुकता, कल्पनाशीलता, विचारशीलता, इत्यादि कविता के खास गुण है कविता गैय और अगेय दौनों रूपों में लिखि जा सकती है।*
      मेघमाल की लगभग सभी कवितायें सहज सरल एवं सुबोध है।कवि पाण्डित्य प्रदर्शन के स्थान पर लोकानुरंजन एवं लोक संवाद को सर्वाधिक महत्त्व देता है।इसलिए वह गीति रचनाओं में ज्यादा डुबकिया लगाता है।वास्तव में "देवकी दर्पण रसराज"मूलतः एक अच्छा गीतकार है।
  हांलाकि कवि ने मुक्त छन्द अगेय कविता लिखने का प्रयास भी किया है परन्तु उसका मोहक अन्दाज गीतों में ही देखने को मिलता है।
कवि गज़ल की ओर भी उन्मुख हुआ है।
  इस संग्रह की अधिकांश रचनायें परिवार प्रेम, श्रृंगार, पर्व, त्यौहार देश भक्ति इत्यादि पर केन्द्रित है।
   हर्ष और उल्लास के साथ साथ वह जीवन के कठौर यथार्थ से भी रुबरु होता है तब वह लिखता है:--
मरघट हुई सी लगती है धरती कैसे धीर बंधाऊ।
भीषण पड़ा अकाल प्रेम के कैसै गीत सुनाऊँ।।
  इसका मतलब यह कतई नहीं है कि कवि दर्पण निराशावादी है वह नये पुराने विचारों के द्वन्द्व को झेलता है:--
मुक्त कण्ठ से मुक्त विचारों को कहता हूँ।
मैं चिन्तन की धवल धार में नित बहता हूँ।।
  कवि लोगों के भ्रम और अज्ञान को तोड़ने के लिए भी प्रयत्नशील है:--
*ज्ञान चक्षुओं को खोल साफ दिखाई 
देगी तस्वीर दर्पण की तरह*
  मेघमाल में कवि ने नारी महीमा, नेत्रदान, रक्तदान जैसे समाजोपयोगी कार्यो को भी स्थान दिया है।शिक्षित बेरोजगार की हसरतों पर भी वह नज़र डालता है।
   काव्य संरचना में सादगी के साथ लोक मुहावरों एवं प्रतिकों का यत्र तत्र प्रयोग दिखाई देता है।
   इस प्रकार मेघमाल सरस एवं पठनीय काव्यकृति है।


     3.  कांकरी घूंदता पग(जातरा वृतान्त) 
राजस्थानी कृति2013
राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बिकानेर के आर्थिक सहयोग सूं प्रकाशित
         कवि लेखक भाई देवकी दर्पण को धार्मिक ग्रन्थों व्यापक ज्ञान है यह ज्ञान गोदड़ी इन्हैं विरासत में मिली है:-
क्योंकि आप पुजारी है जब भी कोई यात्री समूह धार्मिक यात्राओं पर जाते हैं तो आते और जाते वक्त वे कुछेक घण्टे या एकाध दिन मन्दिर परिसर में बिताते हैं;
यात्रा वृतान्त सुनाते हैं यह सब सुनते सुनाते आप इस फिल्ड के कुशल खिलाड़ी बन गए और फिर आपने तो अनेकों यात्रायें की है।
  इन्हीं में से एक सात दिवसीय लम्बी यात्रा
     प्रयाग महाकुम्भ 2013
जिसका मैं स्वयं साक्षी रहा हूँ, जहां मारुति ईक्को के एक करवट में क ईं दूरी तक घर्षण के बाद
मौत हमें सकुशल छौड़कर चली ग ई
अविस्मरणीय यात्रा वृतान्त है यह


 भाई देवकी बहुत हठधर्मी और आशावादी है प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आप आप पीछे नहीं हठते
 इस दुर्घटना के उपरान्त भी हमने  कैसे और किन परिस्थितियों में इस सात दिवसीय यात्रा के बाकी छः दिन व्यतित हुए यह हम ही जानते हैं.... हरे राम!
यात्रा वृतांत एक साहित्यकार रचनाकार द्वारा लिखा गया यात्रा संस्मरण है, इसका भक्ति पक्ष एक पहलू हो सकता है पर यात्रा संस्मरण का जो साहित्यिक सांस्कृतिक पहलू है वह महत्त्वपूर्ण है।
  इस कारण इस पुस्तक के जरिये देवकी दर्पण के साहित्य में सांस्कृतिक सृजन सराहनीय योग्य हैं।
  इस कृति की भाषा रोचक और प्रवाहमय है।
    कवि का यह यात्रा वृतांत पठनीय एवं दर्शनीय हैं।


4."क्है चकवा-सुण चकवी"
राजस्थानी लोक कथा संग्रह


      यह51 कथाओं का संग्रह अनूठा एवं अनुपम है।जो कुछ है इस लोक में ही है सृजन की सारी शक्तियां कला समृद्धि ,लोक से जुड़ा कोई भी मनुष्य या जीव अपने आप में रिक्त नहीं है, उसके पास सृजन क्षमता है।इसलिए नारद जैसे ब्रह्म ऋषि देवलोक छोड़कर भू लोक में भ्रमण करते थे यहाँ की लोक कथायें सुनकर लोक मंगल अमंगल देखकर भगवान को बेकुण्ठ धाम जाकर सुनाया करते थे।
   इन लोक कथाओं में इतनी ताक़त है कि आज भी लोग गाँवों में कईं घण्टों तक धूणियों और चौपालों पर कथा कहानियाँ किस्से कहते और सुनते मिल जायेंगे। जहाँ तक मेरा अनुभव है भाई देवकी दर्पण का गांव रोटेदा आज भी इस दृष्टि से समृद्ध और सम्पन्न है।इन कथा कहानियाँ आपके गांव में आज सुनने को मिल रही होंगी क्योंकि आपके गांव और पड़ौसी गांवों में अति पिछड़ै परिवारों की बहुतायत है वन भूमि होने से धूणियों को ईधन निशुल्क उपलब्ध हो जाता है और बड़ी बात चकवा चकवी के जोड़े चम्बल के छिछले पानी में किलोले करते हुए देखे जा सकते हैं; इसलिए इस संग्रह की कहानियों के लिए आपको ज्यादा दूर छलांग लगाने की जरुरत महसूस नहीं हुई होगी।
    तमाम रसों का आस्वादन कराती हुई यह लोक कथाऐं जन मंगल का काम करेगी।
  एक मात्र लोक रंजन, जन मंगल के उद्देश्य को लेकर बनायी गयी यह कहानियाँ, बांता, आदि काल से अब तक लोक रंजन जन कल्याण करती हुई भाई देवकी दर्पण के कथा संग्रह तक पहुँच रही है ।
 हो सकता है निकट भविष्य में विष्णु शर्मा के पंचतंत्र की तरह इस कथा संग्रह की कहानियों का चयन विद्यालय की पुस्तकों में कर लिया जाए।
   भाई देवकी दर्पण ने इस कथा संग्रह में मायड़ भाषा हाड़ौती के आंचलिक शब्दो कहावतों मुहावरों को जैसा सुना हूबहू उकेरने का सार्थक प्रयास किया. है।
   यह लोक कथायें ज्यादातर काल्पनिक हो सकती है किन्तु यह कहानियाँ लेखक की मनगढ़न्त नहीं है।
  यह लोक कथाऐं काल्पनिक होते हुए भी जन जीवन और जगत व्यवहार की कहानियाँ है।
न्याय अन्याय और मानव जीवन की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करती हुई लोक कल्याण का काम करती हैं।
यह लोक कथाऐं इंसान को कठिन से कठिन समस्याओं और बुरे से बुरे वक्त में भी हिम्मत हार नहीं होने देती।
इसलिए इस ग्रंथ का देश प्रदेश में स्वागत होना चाहिए
 अन्त में आपकी कृतियों में भूमिका लिखने वाले मूर्धन्य लेखकों की टिप्पणियों से रुबरु कराना चाहूँगा।
  *आदरणीय मुकुटमणिराज जी लिखते हैं:--
राजस्थानी का नुया लिखारा कै लेखै भाषा की अबकायां अर लिपि की समरूपता को संकट एक साधारण बात छै, ऊं सूं देवकी दर्पण भी अछूतो कोईनै, पण भाव भूमि की दीठ सूं देखां तो गीतां में घणी ठाम पै नुई उपमा, अलंकार अर ग्रामीण लोच देखबा में मलै छै।"*


आदरणीय जितेन्द्र निर्मोही जी लिखते हैं:---
 ठेठ हाड़ौती को ज्ये प्रयोग देवकी दर्पण का सिरजण मं मिले छै बौत कम रचनाकांरा में देख्यो जावे छै।


आदरजोग आईदान भाटी जी के अनुसार:-----
  भाई देवकी दर्पण दीपक री अऐ लोक कथावां आज रै दासते मांनखे माथै बिरखा जल री ठण्डलक भरी छांटा है जिणसूं मांनखै नै शीतलता मिलैता।


डॉ.श्री कृष्ण जुगनू जी के अनुसार:---
   "हाड़ौती रा ठाबा रचनाकार भाई श्री देवकी दर्पण राजस्थानी लोक कथावां नै संकलन अर संपादन रो चौखो काम करियौ है।"


 ख्यातनाम कहानीकार आदरणीय विजय जोशी के अनुसार:--------
  आखीर में या ई कै लेखक देवकी दर्पण नै हाड़ौती अंचल की राजस्थानी लोक कथावां को संकलन अर लेखन कर एक महताऊ काम करयो छै ज्यो आज का ई बगत में जरूरी भी छो।"


  सारांश:----आपके सृजन में लक्षणा व्यंजना शब्द शक्तियों से बनने वाले बिंब  सराहनीय है।श्रृंगार के गीता का शिल्प सौन्दर्य देखते अनिंद्यहैं।
    नये नये प्रतीक मुहावरे और लोकोक्तियो का. प्रयोग हाड़ौती भाषा को सम्पन्न और समृद्ध बनाने में उल्लैखनीय योगदान होगा।आप मायड़ भाषा के श्रेष्ठ और अग्रगण्य कवि लेखकों की सूची में अपना नाम दर्ज कराने में कामयाब रहें हैं।
 
दर्पण रख सामने नित देखें रसराज
हास्य व्यंग्य श्रृंगार करता तुम पर नाज़
लेखन ऩजीर बन जावे जुबा जुबां पर हो कहानी
तासीर अपनी दिखा रहा है माँ चम्बल का पानी।।
    बहुत बहुत बधाईयाँ, साधुवाद, हार्दिक शुभकामनाएं.
            


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