मेरे इस #गीत का जन्म आज से कई वर्ष पूर्व तब हुआ था जब मेरे पति (विनीत मिश्रा) #ब्रेनट्यूमर के ऑपरेशन के बाद भी स्वस्थ होते नहीं दिख रहे थे........मैं आशावादी, सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाली, प्रत्येक दशा में प्रसन्न रहने वाली,ऐसे वज्रपात से सहम गई थी। मायके-ससुराल द्वारा प्रदत्त हिम्मत, साथ, सहयोग ने दृढ़ता दी, सम्बल दिया.....,पर कोटि प्रयत्न के बावजूद जब अथाह वेदना, निराशा, नकारात्मकता से अधीर हो उठी थी तब व्याकुल, व्यथित मन ईश्वर से स्वयं के लिए मृत्यु की याचना कर उठा था.....ईश्वर कृपा,आत्मीय जनों के स्नेहाशीष एवं #डॉक्टर के उचित उपचार से #मेरेजीवनसाथी के स्वास्थ्य में सुधार हुआ,जीवन में खुशियों की वापसी हुई, सब सामान्य हुआ हम सभी के 'अधर' मुस्कराए और मेरे भावविह्वल हृदय ने पुनः आशा, उत्साह, प्रेम एवं सकारात्मकता से परिपूर्ण रचनाओं को शब्दबद्ध करना आरम्भ कर दिया.....,किंतु यह #रचना जो उस_समय सृजित हुई थी...यह भी #डायरी में है। इसे आप सभी आदरणीय एवं स्नेहीजनों के समक्ष साझा कर रही हूँ।
अन्ततः
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हे ! ईश मुझको तू बुला ले।
अंक में अपने सुला ले।।
क्यों तमस का नित गर्त देखा।
सच हुई कब हस्त - रेखा?
झूठ कब तक है मुस्कराना?
क्यों भ्रमित जीवन बिताना?
तोड़कर भव - सम्बन्ध सारे,
चाह तेरे पास आना।
ओ ! परमात्मा अब आत्मा ये,
चाहती खुद में मिला ले।।
हे ! ईश मुझको तू बुला ले।
अंक में अपने••••••••
क्या यहाँ कुछ बाकी रहा है?
कौन क्या बाकी रहेगा?
स्वप्न मृदु- मधु मन देखता जो,
वेदना ही वह सहेगा।
ध्वंस में निर्माण कैसा?
प्राप्त कर लूँ निर्वाण ऐसा ।
राह देखे अब प्रेय की क्यों?
मीत धोखा है भुला दे।
हे ! ईश मुझको तू बुला ले।
अंक में अपने •••••••••
क्यों राम - सीता कृष्ण - राधा
चिर वियोगी साथ आधा।
शशि- रश्मि- प्रेमी चिर प्रतीक्षित
मन चकोरा क्यों अशिक्षित ?
दुर्दिन यही क्यों याद रखना?
स्वाद दुख का मात्र चखना।
आह ! लीला कैसी अनोखी?
तू मुझे जी भर रुला ले।
हे ! ईश मुझको तू बुला ले।
अंक में •••••••
प्रश्न हो हल यह चाहता मन,
क्यों दिया अभिशप्त जीवन?
शुष्क प्यासा है गात- सावन,
चाहता मन - मेघ पावन।
क्यों छू न पाया प्रणय- वीथी?
मधुमास ऋतु अति निकट थी।
फिर भी झुलसता ही गया क्यों,
पतझड़ी झोंके झुला के।
हे ! ईश मुझको तू बुला ले।
अंक में अपने••••••••••••••
अब थक गया मन गीत गाते,
नित आस के विश्वास के।
पर निराशा ही आ रही है,
चहुँओर मेरे पास में।
है अब न जीवन - गीत गाना,
उर भँवर में क्यों फँसाना?
हों दुख हवन यह व्यर्थ कहना।
डूबने दे या जला दे।
हे ! ईश मुझको तू बुला ले।
अंक में अपने••••••••
इन पत्थरों ने पूज्य बनकर,
उर 'अधर ' पर आज तनकर।
घात आशाओं पर किया है,
घाव सर्जक को दिया है।
हा! मिथ हुआ सुंदर सृजन ये,
शून्य में सब स्वप्न मन के।
अब क्षमा भी मैं दे न पाऊँ,
नेह आमंत्रण भला दे ।
हे ! ईश मुझको तू बुला ले।
अंक में••••••••
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शुभा शुक्ला मिश्रा_'अधर'