अपने दफ्तर में देखा
एक साथी को,
किसी और कि खाली
पडी कुर्सी को सीधा
और व्यवस्थित रखते हुयें
तब जबकि कोई देख भी
नही रहा ताकि तारीफ मिले
राह के बीच पडे पत्थर को
हटाते देखा उसको
जो उस पत्थर से किसी
होने वाली असुविधा का
ख्याल किये बिना अपने
चार पहिया वाहन में जा सकता था
एक नन्हें बच्चे को खिलौना मोबाइल से
माता पिता की फ़ोटो खींचते देखा
वे पोज दे रहें थे और बच्चा हिदायतें।
एक सार्वजनिक पार्किंग के बाहर
स्टूल पर बैठे कर्मचारी को
एक महिला द्वारा अपना
छाता देते हुए
सबके पास थोड़ी थोड़ी उदासियाँ है
और छोटी छोटी मुस्कान
कोई क्या ओढ़ता है
क्या बाटता है
खुशनुमा पल
ये लम्हें रोशनी से बनते है
उजाले बाटने,उजाले साझा करने से।
एक सूरज सबके लिए काफी है
एक आसमान सबका सरमाया है
बादलों की हिस्सेदारी कैसे की जाय
सब साझा मिला है तो साझा किया भी जाय।
डॉ हेमा पांडे