पापा की यादें

 



जाने क्या ढूंढ़ रहीं आंखे मेरी,
कोई तो रौशनी दिखाई दे,
कान तरसे हैं जिन तरंगों को,
धुन वही फिर कोई सुनाई दे.!!


जिनसे ये सांसे मेरी महकी थीं,
दूर उस पार जाके भूल गए,
कौन आवाज दे..??
ओ बिटिया रानी सुनो..!
बहुत प्यासा हूं ठंडा पानी दे..!!


काश फिरसे छत की रेलिंग से,
प्यार से नाम मेरा पुकारे वो,
एक पल को ही उन्हें देख सकूं,
मेरा फिर रास्ता निहारे वो,


शिकायतों पर मेरी बिफरने वाले,
मेरे पापा मुझे दिखाई दें..!!


अब तो हर दर्द घुटक जाती हूं,
किसी से कुछ नहीं बताती हूं,
हो गई हूं मैं अब बड़ी पापा,
क्रोध भी अब नहीं दिखाती हूं..!!


अब तो देदो थोड़ी शाबाशी मुझे,
न किसी ने पीठ थपथपाई है..!!


✍️✍️✍️ आंजना भूषण त्रिपाठी "भावुक"


नवी मुंबई मूलनिवासी (प्रयागराज)


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