अर्जुन तुम प्रतिकार न करके
धर्म युद्ध को टाल रहे हो।
अपना है परिवार समझकर
तुम साँपों को पाल रहे हो।।
उठो पार्थ अब शस्त्र उठाओ
कायरता मत वरण करो,
दुष्ट दानवो का मर्दन कर अब
पापों का क्षरण करो,
ममता का ये निर्मल आँचल
श्वानों के सिर डाल रहे हो।
अपना है परिवार समझकर
तुम साँपों को पाल रहे हो।।
मांस नोचते इन गिद्धों को कब
तक दुध पिलाओगे,
जिनके मुख पर रक्त लगा है कब
तक उन्हें छिपाओगे,
इन भूखे, नंगे असुरों को
किसके लिए सम्हाल रहे हो।
अपना है परिवार समझकर तुम
साँपों को पाल रहे हो।।
तमस उजाला देता है क्या,
पाप- पुण्य उपजाता है क्या?
बंजर पुष्प खिलाता है क्या,
झूठ सत्य बतलाता है क्या?
राज द्रोह करने वालों पर अमृत
कलश उछाल रहे हो।
अपना है परिवार समझकर
तुम साँपों को पाल रहे हो।।
©डॉ. शिवानी सिंह