वन्देमातरम..............
अच्छे खासे सवाल भूल जाता हूँ।
पूछना फिर से हाल भूल जाता हूँ।।
निकलता हूँ जब भी शिकार पर।
लेकिन अपना जाल भूल जाता हूँ।।
गिराने का हुनर बखूबी सीखा है।
सामने उनके चाल भूल जाता हूँ।।
खूब उड़ाये है परिंदे पेडों से हमने।
जिस पर बैठे वो डाल भूल जाता हूँ।।
हर रोज एक नये पर सवार होकर।
वही बीता पुराना साल भूल जाता हूँ।।
उसे उठाने में यहाँ फर्क इतना सा है।
बस मैं अपना ख्याल भूल जाता हूँ।।
मास्टर लिम्बा जैसलमेर