आज मेरे दिल को बड़ा सकून आया है ।
आज ही शाम मेरे साथी का फोन आया है ।।
है शब्द नहीं कोई कैसे बयां करूं मैं ।
बस शुक्रिया है रब का साथी से जो मिलाया ।।
खुशियों का ना ठिकाना घड़िया भी थम गयीं थीं ।
कानो में शहद बनकर दिल में उतर रही थी ।।
आवाज मीठी- मीठी मन को लुभा रही थी ।
हर शब्द पर हमारे वो खिलखिला रही थी ।।
जितनी तड़प थी उसमें
शायद नही थी मुझमें ।
मेरे हृदय के टुकड़े की आग वो तपिश थी।।
पल भर में शांत ज्वाला मन की वो कर गयी थी।
बेजान जिस्म में मेरे नव प्राण भर गयी थी ।।
फिर भी कसक है बाकी है दूर हमसे साथी ।
बनके पवन तू आजा आजा तू मेरे साथी ।।
बनके पवन तू आजा आजा तू मेरे साथी ।
मुझको न भुला देना तुम याद रखना साथी ।।
सांसें हैं मेरी चलतीं सांसों से तेरे साथी ।
तुझको नमन है मेरा शत्कोटि मेरे साथी ।।
सुरेन्द्र दुबे
(अनुज जौनपुरी)
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