तेरे  साथ चलते - चलते

 



मुझे  राहें   मिल  गई  थी
तेरे  साथ  चलते - चलते


हम तो राह भटक गए थे
ना दर था ना थे  ठिकाने
गैरों  से  अपने  बन  गए 
तेरे  साथ  चलते - चलते


अपनों  ने सितम थे ढाये
सभी  हो  गए  थे  पराये
अंजानों  ने  दामन थामा
तेरे  साथ  चलते - चलते


बसती बस्ती जल गई थी
मेरी  हस्ती  मिट  गई थी
बस्ती- हस्ती मिल गई हैं
तेरे  साथ  चलते - चलते


गम के बादल छा गए थे
उर पे बिजली ढ़ा गए थे
सुखविंद्र  मुस्कराने  लगें
तेरे साथ  चलते - चलते


मुझे  राहें  मिल  गई  थी
तेरे  साथ चलते - चलते


सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)


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