मन तू क्यों कलुषित होता है

 



मन तू क्यों कलुषित होता है,


इस भौतिकता की दुनिया मे।।


अभावो का क्रंदन करता है,


देख परायी प्रभुता को तू।।


अपने को क्यो नीरस करता है।।


जो तेरा है तुझको मिल के रहेगा


अटल सत्य यह प्रकति नियम है।।


मन संतोष कर तू आगे बढ़,


मन कर्म प्रधान  तू होकर बढ़।।


भय मुक्त तू होकर आगे चल,


सत्य के पथ पर तू आगे बढ़।।


सच्चे मन से तू आगे बढ़,


रे मन स्थिर होकर तू लग जा।।


संकल्पित पथ आगे बढ़ जा,


कपट द्वंद से नाता छोड़ जा। ।


मन अपने सुविचार मान जा,


सत्य संकल्प के पथ पर बढ़ जा।।


कुछ करने की जिद में बढ़ जा,


संसय छोड़ के आगे बढ़ जा।।


ईर्ष्या कपट को छोड़ के बढ़ जा,


कुविचारों को छोड़ के बढ़ जा,।।


कलुषित मन से निकल के बढ़ जा,


उन्नति के पथ पर तू बढ़ जा,।।


जो तेरा है तुझको मिल के रहेगा,।।


संसय इसमे कभी न रहेगा,


सत्य सत्य ये सत्य रहेगा,।।
                             पी एन त्रिपाठी,,


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