दंगे की आग में जलती दिल्ली

 



तारकेश्वर राय "तारक"


मैं जमीन पर चलने वाला आदमी मैंने बहुत इंसान देखे है जिनके बदन कपड़े से मरहूम रहते है इसके बगैर ठंड में उसे काँपते देख, दिल में टिश भी उठती है । लेकिन सोमवार 25 फरवरी 2020 को दिल्ली में CAA के बिरोध और समर्थन में खड़े लोगों के बीच हुए विवाद के बाद फैली हिंसा ने मुझे बहुत से लिबास दिखाये, दावे के साथ कह सकता हूँ उनके अंदर इंसान तो नहीं था । दिल्ली के कई हिस्से दंगे की चपेट में हैं, जिसका नुकसान बेकसूर लोगों को उठाना पड़ रहा है । अफवाहों का माहौल तनाव बढ़ा रहा है ।


किसी ने सही कहा है की झूठ के पाँव नहिं होते लेकिन सबसे तेज दौड़ता वही है । अफवाहों की आग इतनी तेजी से फैली की देश का दिल राजधानी जहाँ से पूरे देश की सियाशत चलती है हुक्मरानों के नाक के नीचे निरपराध लोगो की अनमोल जिंदगी खाक हो गई जल गए सपने कितनो ही नौनिहालों की जिंदगी शुरू होने के पहले ही दुख के झंझावात में फंस गई । जान गई सो अलग, वाहनो को दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिए, घर दुकान, में आग लगा दी । रेहड़ी पटरी के दुकानदारों को भी अपनी रोजी रोजगार के साधन को आँखों के सामने ही दंगे की आग ने अपने आगोश में समवा लिया ।


इस हिंसा ने दिल्ली के वासिंदे को भय के सागर में गोते लगाने को बाध्य कर दिया है ये बेवजह ही नही है । 84 के सिख विरोधी  दंगो का मंजर  इस शहर ने बड़े करीब से देखा है । मालूम है इसे हिंसा की आंधी जब चलती है तो बहते हुए तत्वों की दलीलें बहुतों के सिर चढ़कर बोलती है । ये दलीलें तो आंधी के बहाव के साथ चली जाती है लेकिन असली टिश तो आँधी के गुजरने के बाद शुरू होता है । हिंसा के कारण मिले घाव को भरने के इंतजार में युग बीत जाते हैं लेकिन समय क्या उस जख्म को पूरी तरह भर पाता है शायद नहीं । समाजिक रिश्तों में पड़ी दरार जुड़ने का नाम नहीं लेती । कारोबारी रिश्ते भी पुराने ढर्रे पर वापस नहीं आ पाते । 


शाहीन बाग में हो रहे प्रदर्शनों के कारण माहौल बिगड़ने की आशंका तो बहुत पहले से ही थी । धरना के शुरू होते ही स्थानीय नागरिकों के अंदर ये डर समा गया कि ये रास्ते भी कही अनिश्चित काल के लिए बंद न हो जाय । उनके इसी आशंका का उपद्रवी तत्वों ने हवा दी और हल्की सी झड़प ने बिकराल रूप ले लिया । 


कभी रहा होगा धर्म का अर्थ दुख और अशांति से मुक्ति दिलाने वाला । आज जो अर्थ हमे दिख रहा है वह है दुख और अशान्ति को बढ़ाने वाला । तभी तो धर्म के आड़ में इतने दंगे फसाद, खून खराबा,राग द्वेष है । 


सम्प्रदायबाद हमारे देश की ज्वलंत समस्या है । इस गाँधी के देश मे हिंसा का जबाब हिंसा से देने का चलन मजबूत होता जा रहा है । इसके लिए जरूरी है धर्म के आध्यत्मिक पक्ष को पूरी ईमानदारी से उभारा जाय । जिस दिन हम इस तथ्य को मान लेंगे की हर आत्मा में परमात्मा का निवास है, उसी दिन दूसरों पर आघात करने की ख्वाहिश खत्म हो जाएगी । 


जो होना था ओ तो हो चुका, प्रशासन और सुरक्षा बल अपना काम कर ही रहे है, अब समय की माँग है कि इस आग को और सुलगने से रोका जाए और जितनी जल्दी हो बुझा दिया जाय ताकि दुबारा उस जख्म के साथ ना जीना पड़े जिसकी पीड़ा दिल्ली करीब तीन दशको से सहती आ रही है । 


शायद हम भूल रहें है कि हम उस  संस्कृति के ध्वजवाहक है जिसमे लंकेश्वर के भाई महाराज विभीषण जो की प्रभु रामचन्द्र के अनन्य भक्त थे और उन्होंने धर्म का साथ भी दिया इसके वावजूद हम उनको पूज्य नहीं मानते । 


‌✍तारकेश्वर राय "तारक"


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