' दादा की मेंहदी '

 



दादी की पसंदीदा 
थी ' मेंहदी '
निसंदेह , दादा ने लगायी थी ' मेंहदी '
 हो न हो दादी के लिए  ???
दादा शौकीन थे काफी 
मेंहदी भी बड़े जतन और 
प्यार से लगायी गयी थी
खूब फैली, खिली खिली 
हरी भरी  दूब सी हरियाली 
बिखेरती 
मेंहदी सड़क के किनारे सदाबहार 
लैंपपोस्ट सी
राहगीर को लुभाती
बटोही रुक रुक कर मेंहदी 
जरूर सुरकते
यह भी दिन दूनी रात चौगुनी
पफनती ,, ,,
इसकी शोहरत के किस्से दूर दराज 
के गांव गिरांव में जंगल के आग की
तरह फैल चुके
दादी सोचतीं दादा के हाथों में कैसा जादू ???
उनके लगाये सारे के सारे पेड़ खूब
फलते हैं मौसम दर मौसम
इकलौती मेंहदी ' सदाबहार '
दादा के जाने के बाद भी  दादी 
मेंहदी से उतना ही प्यार करतीं
जितना पहले
दादी सिल बट्टे पर बहुत बारीक मेंहदी 
पीसतीं और कहतीं मेरे हाथ रच गये
शायद दादा का स्नेह ही था जो
उनके जाने के बाद भी  दादी के
हाथों में चढ़ कर मन के भाव खोलता
दादी अपने पैरों में ही मेंहदी लगातीं
कि ठंडक मिलती है ???
दादी हर चीज के रंग रूप से ज्यादा 
गुणग्राही थीं ???
मुझे भी 'आमंत्रण ' देतीं 
जैसे दादा के स्नेह को मुझमें 
पिरोतीं और तो और
गांव गिरांव सबमें वितरित करतीं ???
अब नहीं  वह मेंहदी का ठौर ठिकाना 
किसी मनहूस की नजर गड़ी मेंहदी पर 
किया काम तमाम उसका 
और स्नेह के सारे बंधन तोड़ डाला 
झटके से ???
_डॉ भारती सिंह  , 03 - 03 -2020


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