माई अम्बर दशा घने री,
बादल दौड़त गाड़ी केरी।
कभी शेर जैसे लगते है,
कभी है जैसे वायस फेरी।।
जोर जोर से शोर कर रहे,
लागत शेर दहाडत मेरे।।
कभी बने है टामी जैसे,
कभी भागते पूंछ बिखेरे।।
कभी नभ में वे गरज रहे थे,
अब तो बन गए शांत सुनहरे।।
बूंदे पड़ रही धरती जैसे,
जैसे बजते सूप मजेरे।।
आग न गौरैया कस फुदके,
दाने जय से उ सी के हों री।।
मैया देखो गिरता पानी,
गाय भैंस कस भागे बकरी।।
पूंछ उ ठ आ कर बोलत ऐसे,
गुर्राते जस अवध के बन्दर।।
वो भी बैठें डाल पै आ के,
सीधे साधे जैसे थलचर।।
चिंता कहां है कोई इनको,
मौसम गरमी बे हया जैसे ।।
किसान बैल संग खेत जारहा,
दावत पुडी खाने जैसे ।।
माई खेत जोत ते कैसे,
फसल काट ते सिर रिपु जैसे।।
चंचल छोड़ो किस्सा भा ई,
खेती बारी होगी कैसे।।
देखो बाबू नीद उठा है,
पानी माई मै लाऊं गा।।
मेरा बाबू रूप सलोना,
स्कूल भी इ सको ले जाऊंगा।।
दोनो भाई पड़ेंगे ऐसे,
ज य से बोले तोते घर के।।
चंचल जग में नाम करेंगे,
जग के दिग दिगंत फैलेंगे।।
आशु कवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल
ओमनगर सुलतानपुर यूपी।
8853521398 ।।