तुम्हारी याद जो लाती है वो कविता
अधर तक आकर जो लौट जाती है
वो कविता ।
बनकर गुलाब झाड़ियों में खिली
पर समय पर झर ही जाती है ,
वो कविता
तुम्हारी याद जो लाती है वो कविता ।
कभी जूही ,कभी चंदन वन सी गमके
कभी नुपूर सी पायल बनकर खनके
कभी सतर्क हिरनी सी पलट कर भाग जाये
कभी चपल बिजुरिया सी जो दमके वो कविता
तुम्हारी याद खस की इत्र में डुबो लाये वो कविता
कभी केवड़े के मादक सुगंध सी
कभी मंजरी आम की सी महके वो कविता
जो रात रात जगाये
तुम्हारी याद संजो लाये वो कविता
जी भर जो पी लूं नयन बंद करके
पावन प्रेम रस अधरों का तुम्हारे
महका दूं सभी अनुबंध जो फिर से तुम्हारे
यही आस बनकर जो जिलाये
वो कविता
तुम्हारी याद जो लाये वो कविता
-सुधा मिश्रा द्विवेदी,
कोलकाता दिनांक 19.02.2020(सर्वाधिकार सुरक्षित )