तेरी यादों की चादर में मुझे गरमी सी मिलती है
दुबक के सोई रहती हूं सुखद नरमी सी मिलती है
सदा देखूँ तेरे सपने मैं सोते जागते प्रीतम
नयन में नींद भी अब तो डरी सहमी सी मिलती है
कभी जो बेख्याली में तेरा जब नाम मैं भूलूं
धड़कते दिल के कोने में तेरी ही बात चलती है
कभी सपने में आते हो कभी मिलने बुलाते हो
तेरी आवारगी मुझको सुनों लहरों सी लगती है
नहीं कोई गजल लिखती कभी भी नाम पर तेरे
रियासत तो मुहब्बत की, बड़ी बदनाम मिलती है
किये होंगे समर्पण तो अनेकों ही मुहब्बत में
ये 'रीना' प्यार में तेरे हजारों बार मरती है।