रिक्शेवाले गुरु जी  : लघुकथा

रिक्शेवाले गुरु जी 
"नहीं, आशु बेटा,इस तरह नहीं बोलते।विभु तो तुमसे बड़ा है।"रिक्शे वाले गिरधारी चाचा ने कहा।
आशु बोला, विभु भइया मुझे चिढ़ा रहे हैं।आपने उनको तो कुछ नहीं कहा।
मैंने सुना नहीं, वरना मैं विभु को बोलता। तुम सब देख रहे हो,कितनी गाड़ियाँ निकल रही हैं,हाॅर्न का बहुत ज्यादा शोर है,इसलिए मुझे सुनाई नहीं पड़ा।फिर मेरा तो सारा ध्यान रिक्शा चलाने पर था।गिरधारी चाचा समझाने के अंदाज़ में बोले।
तभी रिक्शे पर बैठी चार साल की बच्ची, परी जिसका मैथ्स का क्लास टेस्ट था,वह फोर वन्जा फोर, फोर टूजा सिक्स पढ़ते जा रही थी ,को गिरधारी चाचा ने टोका और बताया कि "बेटा फोर टूजा एट होता है , सिक्स नहीं।"
गिरधारी चाचा की बात सुनकर सात साल का बच्चा  गोल-मटोल मयंक बोल पड़ा, चाचा यह बताओ कि आप किस क्लास तक पढ़े हो?
गिरधारी चाचा ने कहा, बेटा मैं तो कभी स्कूल ही नहीं गया।
मयंक ने फिर पूछा,तो फिर आपको फोर का टेबल कैसे पता चला?
गिरधारी चाचा ने कहा, बेटा मैं पच्चीस साल से बच्चों को अपने रिक्शे पर बैठाकर स्कूल छोड़ने ले जा रहा हूँ।मुझे जो कुछ मालूम है, सब तुम्हीं बच्चों से सीखा है और तुम्हीं लोगों को बाँटता रहता हूँ।
            डाॅ बिपिन पाण्डेय


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