महिला शक्ति










 









 


 


 




नीरज मिश्रा 'शुक्ला'


पूर्व ब्रह्मलोक- सुषा नगर वर्तमान में (ईरान) से लेकर इण्डोनेशिया तक अखण्ड भारतवर्ष। तीन ओर से सिन्धु रक्षा करते, सिर पर हिमालय का ताज और नाभी में गंगा माँ। सनातन धर्म (हिन्दु, जैन, बौद्ध, सिख)। यहाँ की संस्कृति वेशभूषा, भाषा समय के साथ हुये परिवर्तन में चाहे बदल गई हो, जो नहीं बदली वो है ‘नारी शक्ति। कहा है - यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते...’ कहते हुए समाज में महिलाओं को सम्मान मिलना चाहिए की बात अक्सर सुनने को मिलती हैं। सम्मान तो हर व्यक्ति को मिलना चाहिए, चाहे वह महिला हो या पुरुष, बालक हो या वृद्ध, घनी हो या निर्घन आदि। किंतु देखने को यही मिलता है कि व्यक्ति शरीर से कितना सबल है, वह कितना घनी है, बौद्धिक रूप से कितना समर्थ है, किस कुल में जन्मा है, आदि बातें समाज में मनुष्य को प्राप्त होने वाले सम्मान का निर्धारण करते हैं । सम्मान-अपमान की बातें समाज में हर समय घटित होती रहती हैं। किंतु महिलाओें (स्त्रियों) के साथ किये जाने वाले भेदभाव की बात को विशेष तौर पर अक्सर उठाया जाता है। फलतः उक्त वचन लोगों के मुख से प्रायः सुनने को मिल जाता है। ऐसा ही हमारा भारतवर्ष जो सनातन घर्म को मानता है, सभी धर्मों का राजा है जिसमें नारी को देवी का दर्जा दिया गया है। पुरातन समय में भी नारियों का दर्जा सबसे ऊँचा था फिर वो चाहे सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और चाहे वर्तमान कलपुर्जों का युग (कलयुग) हो। चाहे माता अनसुईया, सावित्री, सीता, सत्यभामा हो, मीराबाई, अहिल्याबाई हो, हर युग में महिला ने अपनी शक्ति का आभाषा कराया नारी ने।


शैलजा जैन ने ईरान महिला कबड्डी टीम को एशियन गेम्स में गोल्ड दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ईरान की टीम ने भारतीय महिला कबड्डी टीम को हराकर मेडल जीता। एक तरफ शैलजा अपनी टीम ईरान के लिए खुश थी तो दूसरी तरफ भारत के हारने का उन्हें अफसोस भी था। शैलजा जैन (मराठी रानी) के नाम से विश्व में प्रसिद्ध हुई है, जिसने ईरानी महिला टीम को अपनी कड़ी मेहनत के बल से 18वें एशियाड खेलों में चैम्पियन  सोने का ताज पहनवाया। शारदा जैन ने अपने नाम के साथ-साथ भारतवर्ष का भी नाम रोशन किया। महिला जो देखने में तो एक कोमल कली सी होती है लेकिन जिसका हृदय, आत्मा विशाल पर्वत सा होता है। दोनों का अदभुत संगम है। इसका प्रतीक चाहे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हो, सावत्री बाई फूले, सरोजनी नायडू, हज़रत बेगम महल, कर्नाटक की रानी चेन्नम्मा जैसी असंख्य वीरांगनाओं /विभूतिओं से भरा हुआ है अपने देश का इतिहास। जिन्होंने वक्त पर महिला शक्ति को दिखाया और समाज और अंग्रेजी हकूमत को भी दिखा दिया कि नारी अबला नहीं होती, वक्त पर दुर्गा भी बन जाती है। महिला सशक्तिकरण के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिए कि सशक्तिरण से तात्पर्य क्या है? इसका तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है जिससे उसमें योग्यता आ जाती है कि वह अपने जीवन से सम्बन्धित सभी निर्णय खुद ले सके। महिला/नारी में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे हैं। जहाँ पर महिलाएँ/नारी अपने घर-परिवार  व समाज के बनये बंघनों से मुक्त होकर अपने भाग्य की निर्माता स्वयं बन सके। महिलाओं का कार्य इतना ही नहीं कि एक जीवन को जन्म देकर, चार दीवारी में कैद हो जाये। वह ये साबित करे कि अगर वह जीवन को जन्म दे सकती है उसकी भाग्य निर्मात्री भी बन सकती हैं, जो दुःखोें में भी मुस्कुराती है और दूसरों को भी मुस्कुराना सिखाती है।


पूर्व से लेकर 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम और अब तक अनेकों चर्चित महिलाएँ/विरांगनाएँ/ विभूतियों ने जन्म लिया अनेकों चर्चित नाम हैं। जैसे उपरोक्त में दिये गये, सबसे चर्चित नाम हैं बेगम हज़रत महल उनकी हिम्मत/बहादुरी का अंदाजा इसी से लगाया जाता है कि उन्होंने मटियाबुर्ज़ में जंगे-आजादी के दौरान नज़रबंद किए गये वाजिद अली शाह को छुड़ाने के लिए लार्ड कैनिंग के सुरक्षा दस्ते में भी सेंघ लगा दी थी और लखनऊ पर कब्जा करके अपने बेटे को अवध का राजा घोषित किया। इतिहासकार लिखते हैं कि बेगम खुद हाथी पर चढ़कर लड़ाई के मैदान में फौज़ की हौंसलाफ़जाई करती थी। थियोसोफिकल सोसाइटी और भारतीय होम रुल आन्दोलन में अपनी विशिष्ट भागीदारी के लिये जीवन पर्यंत लड़ती रही। भीकाजी कामा को उनके प्रेरक और क्रांतिकारी भाषणों के लिए तथा भारत और विदेश में लैंगिक समानता की वकालत के लिए याद किया जाता है। 22 अगस्त 1907 स्टटगार्ट, जर्मनी में अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट सम्मेलन में कामा ने ध्वज फ़हराया, जिसे आजादी का प्रथम ध्वज कहा जाता है महिला शक्ति के हाथों से। सुचेता कृपलानी ने भारत छोड़ो आन्दोलन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई वो महात्मा गाँधी की बेहद करीबांे में से एक थीं। उस समय साम्प्रदायिक तनाव के माहौल में भी भारतीय संविधान सभा में भी वन्देमातरम् गाकर दिखा दिया था कि नारी शक्ति क्या होती है? भारत कोकिला के नाम से प्रसिद्ध सरोजनी नायडू महिलाओं की प्रेरणास्रोत रही, जो भारत की प्रथम गवर्नर महिला बनी तो विजय लक्ष्मी पण्डित भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की प्रथम महिला जज के पद पर भी सुशोभित हुई।


अनेकों महिला चाहे पूर्व में हो या वर्तमान में वो नारियाँ पुरातन समय में भी पहाड़ की तरह सशक्त थी, आज के वर्तमान समय में भी चाहे खेल का मैदान हो, सेना हो, घर हो, राजनीति हो कोई भी क्षेत्र हो, नारियां हर जगह अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रही हैं। आज भी इस आघुनिक युग में 40 से 50 प्रतिशत महिलाएँ हैं जो शिक्षित होने पर भी घर पर ही बैठी हैं। यानि देश का आधा ज्ञान घर पर ही बैठे बैठे बेकार हो रहा है। हालांकि घर पर बच्चों की देखभाल या परिवार की देखभाल करना भी जीवन का एक हिस्सा है फिर भी इसका मतलब यह तो नहीं कि जीवन वहीं तक सीमित रहे। महिलाओं को भी पुरुषों की तरह आॅफिस आदि जाना चाहिए। क्योंकि इससे उनमें स्वावलम्बी, ज्ञान और आत्मविश्वास बढ़ता है कि वह भी देश के लिए कुछ अच्छा कर सकती हैं।


अगर आसान शब्दों में महिला सशक्तिकरण को समझें तो इसका उद्देश्य होता है महिलाओं को शक्ति प्रदान करना। ताकि वे हमारे समाज में पीछे ना रह सकें, पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने निर्णय ले सकें, सर उठा कर समाज में जी सकेे, कदम से कदम मिलाकर चल सके। महिला सशक्तिकरण का मुख्य लक्ष्य महिलाओं को उनका सही अधिकार दिलाना है। महिला सशक्तिकरण विश्व भर में महिलाओं को सशक्त बनाने की एक मुहिम है जिससे की महिलाएं स्वयं अपने निर्णय ले सके और हमारे इस समाज और अपने परिवार के कई निजी दायरों को तोड़कर अपने जीवन में आगे बढ़ सके। अगर महिलाओं की उपलब्घियों के बारे में लिखना शुरु करु तो लेखनी कम पड़ जाये पर उनके धैर्य, हुनर और ज़ज्बे की गाथा कम नहीं होगी।


 






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