सांवली सलोनी मन मोहिनी सी मूरत
चाँद से भी सुन्दर महबूबा खूबसूरत
चुपके-चुपके चोरी-चोरी निहारती होगी
मन मन्दिर के अंदर वो पूजती भी होगी
दिल मे क्या है बताने की नहीं जरुरत
चाँद से भी सुन्दर महबूबा खूबसूरत
गर्म बाहों में मुझे पलोसती भी होगी
नरम जांघों पर मुझे सुलाती भी होगी
महकते फूलों सी मुलायम है वो सूरत
चाँद से भी सुन्दर महबूबा खूबसूरत
सावन के झूलों पर वो झुलाती होगी
निज सांसों में मुझे समाती भी होगी
परिंदों सी भोली है वो चंदा की मूर्त
चाँद से भी सुन्दर महबूबा खूबसूरत
कदमों की आहट से पहचानती होगी
नींदों में उठकर पुकारती तो होगी
हुस्न की मल्लिका है परी सी खूबसूरत
चाँद से भी सुन्दर महबूबा खूबसूरत
नाम मेरा वो लिखती मिटाती भी होगी
तस्वीर मेरी दिल में बसाती भी होगी
मंद - मंद मधु मुस्कराती होगी वो मूर्त
चाँद से भी सुन्दर महबूबा खूबसूरत
सांवली सलोनी मन मोहिनी सी मूरत
चाँद से भी सुन्दर महबूबा खूबसूरत
सुखविंद्र सिंह मनसीरत