महाभारत काल से स्थापित है ये मंदिर अश्वत्थामा आज भी करते हैं शिवलिंग की पूजा

 



# मंदिर की देखरेख भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है अश्वत्थामा सबसे पहले करते हैं शिवलिंग की पूजा........
केपी बालाजी अवस्थी



      कानपुर। शिवरात्रि का समय हो अथवा सावन का महीना शुरू होते ही चारों तरफ हर-हर महादेव के जयकारे लगने लगते हैं भक्त पूरी श्रद्धा के साथ शिवालयों में जाकर भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं इस खास मौके पर आपको एक ऐसे प्राचीन मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जो महाभारत काल से यहां स्थापित है कहते हैं कि अश्वथामा आज भी शिवलिंग की पूजा करने आते हैं
          कानपुर शहर से करीब 50 किमी दूर रिंद नदी के किनारे महाभारत काल का ये प्राचीन मंदिर स्थापित है सदियों से भोर के समय शिवलिंग पर पुष्प चावल और जल खुद-ब-खुद चढ़ जाता है मान्यता है कि अश्वत्थामा सबसे पहले यहां आकर शिवजी की पूजा करते हैं बता दें कि इस मंदिर की देख रेख भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है करचुलीपुर गांव के किनारे बने इसअद्भुत मंदिर के इतिहास के बारे में किसी को ज्यादा जानकारी नहीं है गांव के प्रधान दिलीप कुमार सैनी बताते हैं कि करीब बीस साल पहले पुरातत्व विभाग की टीम इस मंदिर के निरीक्षण के लिए यहां पहुंची थी उन्होंने कार्बन डेटिंग के जरिए मंदिर की ईंटों का परीक्षण किया तो पता चला कि ये महा भारत काल में स्थापित हुआ था इसके बाद विभाग ने नवीनी करण करते हुए इसके चारो तरफ करीब 200 मीटर की बाउंड्री बनवाई कहा जाता है कि एक चरवाहा अपनी गाय के चराने के लिए यहां आता था यहां आने पर गाय करौली पौधे पर दूध देने लगती थीं जब चरवाहे ने कई बार ऐसा होते देखा तो वहां से पौधा हटाकर खुदाई की काफी खोदने के बाद वहां एक शिवलिंग मिला इसके बाद अवलियों (बहेलिया भी कहा जाता है) ने इस शिवलिंग को मंदिर में स्थापित कर दिया तभी से इस मंदिर को अवलेश्वर भी कहा जाने लगा बुजुर्ग ग्रामीण अमर सिंह बताते हैं कि जंगल में मंदिर होने की वजह से यहां कोई पुजारी नहीं है विभाग ने एक व्यक्ति को इसकी देखरेख के लिए नियुक्त किया है वह शाम को मंदिर का दरवाजा बंद कर चला जाता है फिर सुबह आकर कपाट खोलता है जब सुबह कपाट खोला जाता है तो शिवलिंग पर पहले से ही पुष्प वगैरह चढ़ा रहता है पूर्वज कहते थे कि अश्वत्थामा भोर में आकर शिवलिंग की पूजा करते हैं इसके बाद ही कोई भक्त भोलेनाथ का दर्शन कर सकता है इनके दर्शन मात्र से मनोकामना होती है पूरी अमर सिंह के मुताबिक जब भी कभी गांव में सूखा पड़ता है तो मंदिर में बना कुआं ही गांव वालों का सहारा होता है इस कुएं की गहराई मात्र 30 फीट है इसके बाद भी इसका पानी कभी सूखता नहीं है शिवरात्रि व सावन के महीने में कानपुर और आस पास के शहरों से भक्त यहां आते हैं मान्यता है कि शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं शिवरात्रि व नाग पंचमी के दिन यहां मेला लगता है और दंगल का भी आयोजन किया जाता है इस दौरान यहां हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है !!


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