जस काठे की भवानी,तस कोदई के अच्छत
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हम तौ ठहरेन देहाती मनई।हमरे बाबा एक कहानी सुनावत रहैं-एक पंडित जी कथा सुनावै जात रहैं ,तौ एक कुतरकी आदमी रोज उनका रास्ता रोकै।
-पंडित जी!हमहूं कथा सुनिबै।
पंडित जी चले जांय।
फिर वहै क्रम।फिर वहै क्रम।पंडित जी एक दिन घूमि परे।
-बच्चा!कौन वाली कथा सुनिहौ?
-का कइयौ हैं?
कुतरकी कूदि परा।
-हाँ हाँ ।जइसी सुनौ।दच्छिना के हिसाब से कथा सुनाइब।
-का?यानी दच्छिना के लोभी हौ पंडित?
कुतरकी बड़ा खुश।बभनन केरी बुराई करैक सुनहरा मौका।
-हाँ भैया ।ग्यारह रुपया वाली कथा सुनिहौ?
-ईमा का है?
-ई कथा माँ आपन घर दुआर साफ कै के लीप पोति के केला केरे पात लायके मंडप बनाय के पति पत्नी बइठि के परिवार सहित कथा सुनौ।परसाद बांटौ।
कुतरकी सत्तर कोनेक मुंह बनाइस।
-कुछ कम वाली नाय है?
-है न?पांच रुपैया वाली सुनि लेव।
-ईमा का है?
-सफाई करैक कौनो जरुरत नाय।केला केरे पत्ता भुइं मां गाडि के बइठौ।कथा सुनि लेव।बस।परसाद बांटि देव।
-कुछ ईसे कम वाली नाय है?
पंडित जी इधर उधर देखिन।कोने माँ पतौरा केर ढेर लाग रहै।
-बीस आना वाली कथा सुनिहौ?
कुतरकी खिला होइगा।
-यहै ठीक है।सुनाव।
-अइस करौ पतौरा बिछाय लेव।बइठौ।
कुतरकी जल्दी जल्दी पतौरा बिछाइस और बइठि गा।ऊमां बइठी रहैं बिच्छी ।चबाय खाइन।कूदत कुतरकी भागा।
-पंडित जी!यू कइस कथा सुनायेव?
-अब बीस आना वाली कथा यहै है भइया ।जइसी दच्छिना तइसी कथा।जइस पसु तइस बंधना।जस काठे की भवानी,तस कोदई के अच्छत।जस कुस कांस के भैया,तस मूंज कै करधना।(वैसे शाहीन बाग के लिए भी इसमें समाधान छिपा है।)