हनुमान बना रहा

 



जिन्दगी में  दोस्तो ,मैं हनुमान  बना रहा
प्रेमी जोड़ियों को प्रेम प्रसाद बांटता रहा


गैरों  की  जिन्दगी में  चीराग  जला दिए
खुद  जिन्दगी में  मैं,अंधेरे में घूमता रहा


प्रेमी - परिंदों  को हम ,राहें  दिखाते  रहे
खुद राह में मैं तो बस ठोकर खाता रहा


राम आए जीवन में सीता से मिला दिए
राम सीता  मिलाने में खुद को भूले रहा


जिन्दगियों में  हम तो प्रेम रंग भरते रहे
निज जीवन कोरा कागज कोरा ही रहा


तमोहर की रोशनी को नहीं ले सके हम
चाँद  की चाँदनी में ही शीतल पड़ा रहा


सुखविंद्र मिला सुकून प्रेमसेवा रसरंग में
बस  यही कसूर , हजूर मैं तन्हा रह गया


सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)


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