दूगो घनाक्षरी छंद भोलेनाथ के समर्पित बा-

 



1-
पेन्हे गर नागहार, बेलपत्त के आहार,
जटवा से गंगधार शिव त्रिपुरारी के।


तिरशूल रहे हाथ, डमरू डिमिक जात,
भूत प्रेत चले साथ भव भयहारी के।


पोतल भभूत अंग, रहत भवानी संग,
सहज सुभाव ढंग दीन हितकारी के।


दिव्य रूप, ऊँच भाल, नैन तीन महाकाल,
दरस करे निहाल धनिक भिखारी के।


2-
देखनीं हँ एक्के संग बघवा आ बरधा के
बइठल बैर त्यागि करत बतकही।


सपवाँ खेलत बाटे बिनु भय घुमि घुमि
कबो चोंचवा त कबो पाँखि मोर के गही।


मुसवा सवार खात लड्डू गनपति देव
मीठ बाटे, नींक लागे भूतवन से कही।


अस दरबार भोलेनाथ जी के छोड़ि हम
दुसर जगह कहाँ एह जग में रहीं?


#महाशिवरात्रि के हार्दिक शुभकामना।
संगीत सुभाष,
मुसहरी बाजार,
गोपालगंज।


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