भोजपुरी भाषा के सोझा समस्या 

 


प्रस्तुति बिमलेन्दु पाण्डेय


हम जब एह सवाल के जबाब जोहे खातिर बइठल बानी त युनाइटेड नेशन अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मना रहल बा ।  21 फरवरी 1952 के पुर्वी पाकिस्तान ( अब बंगलादेस )  में कुछ छात्र अपना मातृभाषा खातिर प्रदर्शन शुरु कइलन स ।  जाहिर बा जवन भाषा लदात रहे उ भाषा सत्ता में रहे एह से बंगला मातृभाषा वाला लोगन के दबे के परल , सत्ता के लाठी से पिटाये के परल , सत्ता के गोली के सामना भइल आ कुछ छात्र शहीद हो गइले ।  बंगलादेश बाकयदा एक दुसरा के हाँथ पकड़ के ' शहीद मीनार ' प जाला आ शहीद दिबस मनावेला ।  1999 में युनाइटेड नेशन एह शहादत के सम्मान करत , बंगला मातृभाषा खातिर शहीद युवा लोगन के सम्मान में 21 फरवरी के अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनावेला । 


त अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के इहे बुनियाद ह । चुकि भोजपुरिया क्षेत्र पहिलहीं से अपना उपर तरह - तरह के राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय भाषा के ढो रहल बा आ भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता नइखे मिलल , त अब सोचे के जरुरत बा कि का रउवा लागत बा कि आज के भारत में भोजपुरिया लोग अपना मातृभाषा भोजपुरी खातिर असहयोग आंदोलन लेखा कुछ क सकेला ?  असहयोग आंदोलन भा ' करो या मरो ' जइसन कुछ ?  जबाब बा ' ना ' !  एक हाली हम मान सकेनी कि जदि हिंदी के बचावे के बात होखे त भोजपुरिया लोग रोड़ प उतर सकेला , लाठी डंटा खा सकेला बाकिर भोजपुरी खातिर ?  हमरा शंका बा ।  अबहीं ले जे उतरल बा जतना लो उतरल बा उ ' पैशन ' कम ' फैशन ' बेसी लागेला काहें कि रउरा प्रदर्शन से रउवा आंदोलन से जब ले सत्ता में खुर-खार ना होखे , जबले सामान्य जन-जीवन प कुछ असर ना होखे तब तकले राउर आंदोलन भा हड़ताल भा रैली मात्र एगो फैशन बन के रह जाला ।  


जहाँ ले बात भोजपुरी भाषा के सोझा समस्या भा भोजपुरी के एगो विकसीत क्षेत्र के विकसीत भाषा बने में आवे वाला समस्या के बात बा त हमनी के सबसे पहिले इ बुझे के पड़ी कि एगो भाषा आ ओह भाषा वाला क्षेत्र के विकास खातिर अइसन कवन कवन क्षेत्र बा जवना के बेहतर कइला बा ओह क्षेत्र के विकास हो सकेला । अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के ठीक एक दिन पहिले भारत के उपराष्ट्रपति के कहनाम रहे कि ' सरकारी नोकरी में स्थानीय भाषा के बढावा दिहल जाउ ।  यानि कि जदि रउवा कवनो सरकारी नोकरी में महाराष्ट्र जात बानी त रउवा मराठी आवे के चाहीं ।  अब सोची कि केहू बिहार भा पुर्वांचल में आवत बा त ओकरा ?  का मैथिली भोजपुरी के सोझा ले आवल जा सकेला ?  मैथिली के लगे त संवैधानिक आधारो बा एकरा बादो ?  भोजपुरी के त के पुछला , भोजपुरी सिनेमा से जुड़ल अधिकतर लोग भोजपुरी ना जानेला बाकिर उ भोजपुरी सिनेमा में हर तरह के स्टार ह ।   


मुद्दा प आवल जाउ , त समस्या के जोहे से पहिले हमनी के ओह तत्व के टकटोरे के परी जवना के रहला से भोजपुरी भाषा आ क्षेत्र के विकास हो सकेला ।  त आखिर उ कवन तत्व ह जवन कारक हवन स कवनो भाषा के विकास में ?  आ कइसे एगो भाषा के विकास ओह क्षेत्र के विकास के गारंटी ह ?  


कवनो क्षेत्र के विकास के मुख्य कारक -  


1- शिक्षा स्थानीय भाषा में शिक्षा ( स्थानीय / प्राथमिक भाषा + राष्ट्रीय सम्पर्क भाषा + अंतराष्ट्रीय सम्पर्क भाषा ) 
2- सरकारी रोजगार ( स्थानीय / प्राथमिक भाषा आधारित रोजगार )  
3- स्थानीय कला / गीत / संगीत / सिनेमा के बढावा 
4- स्थानीय भाषा में खेती-बारी में उचित प्रयोग 
5- स्थानीय साहित्य के बढावा 
6- व्य्वसाय ( स्थानीय उपलब्धता के हिसाब से ) 


जदि कवनो क्षेत्र मेट्रो आ कास्मो सिटी ना होखे त ओह क्षेत्र के विकास एकमात्र ओजुगा के भाषा ओजुगा के संस्कृति ओजुगा के कला आ ओजुगा उत्पन्न होखे वाला ओजुगा बने वाला पदार्थ अनाज आदि के समुचित व्यवहार में ले आवला से होखे वाला बा ।  चुकि भाषा आ संस्कृति सहचर ह एहि से भाषा के विकास क्षेत्र के विकास खातिर ड्राइवर सीट प रहेला । अब सवाल बा कि आखिर भोजपुरिया क्षेत्र के आ खास क के भोजपुरी भाषा के विकास काहें नइखे होत ?  आखिर का समस्या बा भोजपुरी के विकास में ?  


एह बात के बुझे खातिर हमनी के , भोजपुरी के सोझा आवे वाला समस्या के दू हिस्सा में बाटे के परी ।  एगो हिस्सा जवन बहरी से बा , क्षेत्र के बहरी से बा आ दुसरा हिस्सा जवन भोजपुरी क्षेत्र के भीतरी बा ।  यानि कि भोजपुरी भाषा के विकास के रोके वाला External and Internal issues. 


क)  वाह्य समस्या [ भोजपुरी क्षेत्र के बहरी से समस्या ] 


1- संवैधानिक मान्यता 


भारत में भाषाई विविधता के साफ आ सोझ-सोझ अलगा अलगा राज्य से जोड़ दिहल गइल आ ओह में जब बंगलादेस वाला वाक्या भइल त अउरी लोग हदस गइल नतीजा संविधान के आठवा अनुसुची अइसन ना ब गइल कि उ अब नया भाषा जवन शामिल होखे आवs स ओकनी से ' कोरोना वायरस ' लेखा बेवहार करे लागल ।  जबकि भारत के अइसन अइसन राज्य बाड़न स जहाँ एक राज्य में दू-तीन-चार गो भाषा अइसन बाड़ी स जवन संवैधानिक सुची में बाड़ी स ।  भोजपुरी, संविधान में शामिल करे खातिर बनल मय कमेटी आ हर जरुरत के पुरा करत बिआ एकरा बादो संविधान में शामिल नइखे हो पावत ।  काहें एह बात के जबाब सरकार के लगे नइखे ।  भोजपुरिया लोगन के लगे ओइसन कवनो जोगा‌ड नइखे कि सरकार प दबाव डाल सको ।  


2- सत्ता के बेरुखी 


एगो खबर के हिसाब से संस्कृत भाषा प सरकार सैकड़न करोड़ खरचा क चुकल बिआ , हिन्दी भाषा प हजारन करोड़ से उपर खरचा क चुकल बिआ आ लगातार क रहल बिआ ।  बाकिर एह कुल्ह के बीचे भोजपुरी जइसन भारत के दुसरा बड़ भाषा खातिर अनुदान के नाव प चिटुकी भर नूनो ना मिलेला , अउरी बाकि त छोड़िये दिहल जाउ ।  जहाँ सत्ता भाषा के ले के शुष्क बिआ त भोजपुरी के ले के शायद नफरत के भाव ले ले बिआ ।  


3- नान-भोजपुरिया के नजर में भोजपुरी भाषा के इमेज - 


भोजपुरी भाषा प एक समय भारत के आ विश्व के मानल जानल सर्वश्रेष्ठ भाषाविद लो काम कइले बा लो ।  भोजपुरी भाषा के व्याकरण अमेरिका मारिसस से ले के भारत तक लिखाइल बा ।  एक समय अइसन रहे कि भारत के लगभग मय सर्वश्रेष्ठ गायक भोजपुरी सिनेमा में गावल चाहत रहले ।  बाकिर आज , जदि भोजपुरी के कहीं बात होता त जवन इमेज ओह लो के सोझा आवत बा उ बहुत नफरत से भरल , सेक्सुल अपीजमेंट के प्रोजेक्ट करे वाला सीन गीत आ गीत के बोल लउकत बा ।  क जगह त भोजपुरी सिनेमा आ गीत के ' शाफ्ट पार्न ' के संज्ञा दे दिहल बा ।  समस्या इ एह से बा कि इ नान=भोजपुरिया लोग जहाँ शाफ्ट-पार्न कहे में कोताही नइखे बरतत ओजुगे भोजपुरी के नीमन सरुप के देखे के आ ओह के बुझे के कोशिश नइखे करत ।  


4- भोजपुरी भाषा आ कि बोली - 


अइसे त इ खाली वाह्य ही ना आंतरिको समस्या ह बाकिर वाह्य खातिर कारण अलग बा आंतरिक खातिर कारण अलग बा ।  नान-भोजपुरिया लोग खास क क पश्चिम, दक्षिण आ पुर्वोत्तर भारत के लोग भोजपुरी के बोली एह से मानेला काहें कि भोजपुरी संविधान के आठवा सुची में शामिल नइखे ।  अधिकतर लोगन के दिमाग में इ बात बइठल बा कि जवन भाषा ह उ संविधान में बड़ुवे ।  एह श्रेणी में उहो लोग बा जे अतिराष्ट्रवादी भा अति-हिंदीप्रेमी भइला के नाते हर ओह भाषा के हिंदी के दुश्मन मानेला जवन भाषा भारत में बा‌डी स ।  [ एह प चर्चा आंतरिक समस्या वाला सेक्सन में होइ ]  


5-  पलायन गरीबी के पहचान बनत भाषा - 


भोजपुरिया क्षेत्र में गरीबी आ भोजपुरिया क्षेत्र से पलायन के पिछला 400 बरिस के इतिहास रहल बा । बाकिर पहिले के पलायन पह्चान आ भाषाई पहचान ना बनल रहे , जबकि पिछला 25-30 साल से भोजपुरी के पलायन आ गरीबी के संगे जोड़ के अइसन बना दिहल गइल बा कि एह भाषा के संगे अधिकतर नान-भोजपुरिया जे पढल लिखल होखे उ हेय दृष्टि से देखेला ।  ओकरा नजर में इ गंवार, अनपढ लोगन के भाषा ह ।  पढल लिखल समाज चुकि गांव के लोगन के असभ्य उदंड बुझेला एह से भोजपुरी के माथ प एगो अनपढ आ गंवार के टैग भी लगा दिहल गइल बा । 


ख )  आंतरिक समस्या [ भोजपुरिया क्षेत्र आ भाषी लोगन के बीच के समस्या ]   


1- मातृभाषा के ले के संकुचित भा लजकोकड़ सोच - 


भोजपुरी क्षेत्र के अधिकतर लोग इ मान के चलेला कि उ जवन बोलत बा सामान्य रुप से आ जवना के पढावल नइखे जात जवना भाषा में पढाई लिखाइ ना होला उ भाषा ना बोली ह ।  यानि कि भोजपुरिया क्षेत्र के अधिकतर लोग इ मान ले ले बा कि भोजपुरी बोली ह आ मातृभाषा हिंदी ह ।  एगो समय रहे जब दू गो भोजपुरिया मिलत रहलन स त भोजपुरी में बात करत रहलन स बाकिर अब  दू गो का कतनो भोजपुरिया होखा स , बात भोजपुरी छोड़ के बाकी मय भाषा में होता ।  रउवा विश्वास ना करब , बलिया , आरा , छपरा , सिवान , गोपालगंज, रोहतास , गोरखपुर , मउ , आजमगढ, गाजीपुर , भभुआ कवनो भोजपुरिया इलाका के शहर में चल जाई , रउवा भोजपुरी छोड़ के बाकि मय भाषा में बोलत भोजपुरिया मिल जइहें आ जदि रउवा उनुका से भोजपुरी में बतिया देहनी त बस पुछी मत ।  


2- भोजपुरिया क्षेत्र के भाषाई शिक्षा में खामी -  


सीबीएसई बोर्ड , युपी बोर्ड , एनसीईआरटी बोर्ड आ शायद बिहारो बोर्ड अपना अपना क्षेत्र में छात्र/छात्रा के इ पढावे ला कि भोजपुरी , हिन्दी के उपभाषा ह भा एगो बोली ह । कुछ समय पहिले ले पढावल जात रहे कि हिंदी के अपभ्रंस ह ।  एह के अलावा जब पुरा भारत में त्रिभाषा सुत्र ( तीन भाषा में पढाई यानि प्राथमिक, हिन्दी आ अन्य/बिदेसी ) लागू भइल त भोजपुरिया क्षेत्र से प्राथमिक हटा के संस्कृत क दिहल गइल ।  यानि कि एह कुल्ह के देख के लागेला कि भोजपुरिया क्षेत्र में प्राथमिक कुछ हइये नइखे मय अंतिमे बा  ।  एह क्षेत्र के , एगो उद्देश्य के साथे , अइसन पछुवाह बनावल गइल बा ।  


3- भोजपुरी चुहानी / घर के भाषा ह -  


' हम अपना घर में भोजपुरी में बात करेनी ' भोजपुरी खातिर इ कथन जीउ के काल ह ।  असल में एहि कथन से भोजपुरी बस वाचिक बनल रहि गइल ।  लोगन के भीतरी एगो अइसन सोच भरा गइल आ लोगन के ओहि में संतोष मिले लागल कि उ अपना घर में भोजपुरी में बात करेला ।  नतीजा इ भइल कि अगिला पीढी एह भाषा से कटे लागल । अविकसीत क्षेत्र के नौनिहाल रोजी रोटी के खोज में ना अपना घर-दुआर बलुक भाषा आ संस्कृति से दुर जाये लगले । जब चुहानिये आंगन ना रही त भाषा कहाँ से बाची ?  भोजपुरी क्षेत्र के अधिकतर साहित्य लो हिंदी में एह से लिखेला काहें कि ओकरा भोजपुरी लिखे में लाज लागेला ।  ओकरा दिमाग में इ बइठल बा कि भोजपुरी यानि कि चुहानी के भाषा ।  ओकरा लाज लागेला कि ओकर माई ईया दादी नानी फुहा आदि ओतना पढल लिखल ना ह लो आ भोजपुरी ओहि लो के भाषा ह , इ पढल लिखल लोगन के भाषा ना ह , आ एहि से उ अपना मातृभाषा भोजपुरी से भागेला ।  


4- फफाइल राष्ट्रवाद आ खउलत जवानी 


राष्ट्रवाद के नाव प एह क्षेत्र के खलिहर आ हाफ-भरल युवा अतना ना फफा जात बाड़े कि अपना के जिआन क लेत बा‌डे ।  राष्ट्रीय भाषा (?)  हिन्दी , इ एगो बहुत बड़ बेमारी लोगन के कपार में बा आ ओहू में भोजपुरिया क्षेत्र , बाप रे बाप , ओकरा दिमाग में इ बइठ गइल बा कि भोजपुरी बोली ह , बस हिंदी ।  विश्वास करीं हमरा गांव के हमरा हित-मीत लो हमरा से सोझा-सोझी भोजपुरी में बतियावेला बाकिर जब लिखित यानि फेसबुक प संवाद होला त उ लो हिंदी में आ जाला भा अंग्रेजी में ।  


भोजपुरी भाषा में गीत-संगीत के नाव प जवन परोसा रहल बा उ भोजपुरी खातिर सबसे बड़ समस्या बा ।  एक हाली भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता मिलियो जाई त इ अश्लील फुहर गीतन वाला बेमारी , भोजपुरी के जिये ना दिही ।  भोजपुरी भाषा में गैगरीन लेखा इ बेमारी ढुक गइल बिआ ।  कबो कबो त इ लाइलाज लागेले आ  इहे लागत बा कि भोजपुरी के हृदय छोड़ के एकर असर मय देहिं इहाँ ले कि दिमाग ले हो गइल बा ।  इ बेमारी अब भोजपुरी के सरिहार केखा रहल बिआ ।  आ एह पुरा घटनाक्रम खातिर एह  क्षेत्र के युवा लो दोषी बा ।  


5- अहंकार आ स्वार्थ से भरल भोजपुरी के साहित्यकार आ संस्था वाला लोग 


अहम के भाव , खाली हमार किताब हमार लोग , छौना लेखा बनत संस्था , साहित्य के नाव प कंज्जास आ कंड्डम किताब परोसत , पत्रिका के नाव प महाकंड्डम साहित्य परोसत , एह घरी मय के मय लो संपादक , अध्यक्ष , चेअरमैन आ दू का दू का बनल बा लो । समस्या इ बा कि स्थापित साहित्यकार लो अइसने कुल्ह लोगन के झंडा उठा के जय भोजपुरी क रहल बा लो ।  हम जब आज से 30 साल पहिले के भोजपुरी के देखत बानी त आज के भोजपुरी साहित्य अवसान प बा ।  आ एकरा पाछे के सबसे बड़ कारण स्थापित साहित्यकार लो बा ।  हैलोजन आ फ्लड लाइट के सोझा मंच प बइठे के जवन बाउर लकम धराइल बा कि एह चमक दमक में भोजपुरी बद-बदतर भइल जा रहल बिआ । 


संस्था वाला लो के का कहल जाउ , माने रउवा सभ मानब , दिल्ली में खाली पुर्वांचल के नाव से 17 सय से बेसी संस्था बाड़ी स ।  यानि कि भोजपुरी में जतना लोग लिखत नइखे ओह से बेसी भोजपुरी के नाव प संस्था बाड़ी स ।  अश्लील फुहर गायक गायिका के गोड़ में परल इ कुल्ह संस्था असल में एक नमर के भोजपुरी के ब्लैकिया हवन स जवन भोजपुरी भाषा के बेचे के काम क रहल बाड़न स ।  संविधान के नाव प फोंफी मुह में धइ के फुंक के फेरु घोंट जात बाड़न स । 


6- भोजपुरिया क्षेत्र के नेता आ जनप्रतिनिधि -चौपटानंद -  


भोजपुरी के आयोजन में फीता काटे पहुंचे ला लो , अश्लील फुहर गीतन के गायक गायिका लो स्तुति करेला लो , बाकिर भोजपुरी भाषा साहित्य के विकास , संवैधानिक मान्यता के ले के एह लो के गतिविधि बस कोरम पुरा करे वाला रहेला ।  असल में एह जनप्रतिनिधियन के सोझा संस्था आ साहित्यकार लो नवल रहेला एहि से एकनियो के बुझ गइल बाड़न स कि जब भोजपुरी के बाउर होता त एकनी के बोलते नइखन स त भोजपुरी के कुछ नीमन नाहियो कइल जाइ त एकनी के ना बोलिहन स ।  आ एहि से एकनी के माजा में बाड़न स । का फरक परता ?  कवनो ? कइसनो ?  


7- भोजपुरी क्षेत्र के पढल लिखल लोगन के भोजपुरी से दुरी - 


अमूमन आ इ बात संभवतः सब केहु जानत होइ कि गांव से ले के शहर तकले , भोजपुरी क्षेत्र में अधिकतर युवा जदि तनि पढ-लिख गइले त उ सबसे पहिले भाषा छोड़ेले फेरु खान-पान ओकरा बाद पहिरावा ।  आज जब मातृभाषा दिवस के बात होता त आजो रुउवा सोसल साइट प भोजपुरिया भाषी लोग हिन्दी आ अंग्रेजी में बधाई देत लउकी ।  इ उहे लोग ह जे मातृभाषा के ओइसहीं मन पारेला जइसे श्राद्ध देबे खातिर खानदान के चिराग लो पिंडा पारेला । अधिकतर पढल लोगन के ना खाली भोजपुरी क्षेत्र से पलायन भइल बा बलुक इ लो भाषा से पलायित हो गइल बा ।  जबकि एह के उलट कम पढल लिखल लोग भा जे गांव प शुरुवे से बा उ लगातार भोजपुरी भाषा के प्रयोग क रहल बा ।  


8- मातृभाषा के महत्व से दूर भोजपुरिया - 


अमूमन अइसन कुल्ह चीज , पढल लिखल लोग ही बुझ पावेला , बाकिर इ कुल्ह चीजन के शुरु से समुचित जानकारी बहुत जरुरी बा ।  मातृभाषा के विकास , कइसे क्षेत्र के विकास क सकेला , कइसे मातृभाषा रउवा के अपनाअ माटी अपना देस से जोड़ के राखेले , कइसे क्षेत्रीय विकास आवे वाली पीढी के विकास आ अपना पहचान के मातृभाषा बचा के राखेले बना के सरिहार के राखेले , आदि चीजन के जानकारी बाल-मन से क्षेत्र में होखे के चाहीं । 


9- भोजपुरी साहित्य से अंजान नवहा समूह - 


कुछ साल पहिले के बात ह एगो आईआईटीयन मित्र हमरा हाँथ में एगो भोजपुरी किताब देखले त पहिला सवाल उनुकर इहे रहे कि भोजपुरी में लिखा सकेला ?  भोजपुरिया क्षेत्र के सबसे बड़ समस्या बा कि भोजपुरी जवन काम भइल बा ओह से नया पीढी अनजान बिआ ।  चुकि भोजपुरी भाषा आ साहित्य के दिसाई शिक्षा के क्षेत्र में कवनो काम नइखे होत ,एह से नवहा लोग भा अधिकतर लोग भोजपुरी में होखे वाला साहित्यिक सांस्कृतिक गति-विधि से अंजान बा ।  भोजपुरी के साहित्यकार लो खेमा में बंटाइल साहित्य से बेसी अश्लील फुहर गावे नाचे वाला कार्यक्रम में मंचासीन होखे के बेसी शवख राखेला लो एह से इ लो भाषाई प्रचार आपन साहित्य के प्रचार के ले के कार्यकर्ता ना बनल । इ लो किताब लिखते भा पत्रिका निकालते महंथ बन जाला ।  का जाने कहाँ से अतना टसन छाप के चलेला लो ।  इहे कुल्ह रहन भोजपुरी भाषा आ साहित्य के प्रचार-प्रसार आ अधिकतर लोगन से जुड़ाव ना होखे देले । 


10- भोजपुरी क्षेत्र के राज्य सरकार के नकारापन - 


भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता एगो चीज बा आ सबसे जरुरी चीज बा बाकिर जदि राज्य सरकार चाहें त अपना राज्य भा ओह भाषा वाला क्षेत्र में ओह भाषा में भाषा के पढाई करवा सकेले ।  भोजपुरी के पाठ्यक्रम  बिहार में बा , अध्यापक के नियुक्तियो भइल बा भोजपुरी के नाव प , भोजपुरी के विभागो बा क गो युनिवर्सिटी आ कालेज में बाकिर इ कुल्ह खेत में राखल ' धूहि ' लेखा बा ।  सरकार के ओर से अब त कोरमो पुरा नइखे कइल जात । 


11- भोजपुरी जनला में नाफा नइखे  - 


आज के समय में जहाँ हर चीज नाफा खातिर हो रहल बा ओइसना समय में केहु भोजपुरी काहें पढो ?  आखिर जवना भाषा के पढ के रोजगार ना मिली , काम-धाम ना मिली फेरु केहू ओह भाषा के काहें पढो ? ओह भाषा में केहू काहें जियो ? भाषा आधारित रोजगार के सोच अपना क्षेत्र में नइखे ।  जइसे हिंदी भा कवनो अउरी भाषा के वजह से नोकरी आ काम-धाम मिल रहल बा ओहि तरे भोजपुरी के विकसीत करे के परी ।  संवैधानिक मान्यता से ले के शिक्षा तकले सरकारी नौकरी में स्थानीय भाषा के जरुरी करे तकले , भोजपुरी के क्षेत्र में भोजपुरी चली त इ क हजार नौकरी ले आ सकेले आ तब बहुत आसान होइ लोगन के भोजपुरी से जोड़ल लोगन के मातृभाषा से लोगन के जोड़ल । 


आज मातृभाषा दिवस प जब हम एह कुल्ह चीजन के लिख रहल बानी त अइसन नइखे कि एह समस्या सभ के जदि अबहीं हल क दिहल जाउ त मय सही हो जाइ ।  भाषा के विकास में क्षेत्र के विकास एगो सतत , लगातार होखे वाली प्रक्रिया ह ।  जदि प्रयास कइल जाउ त एह में लगातार सुधार हो सकेला ।  आ आज के समय में जब रोजगार के स्कोप घट रहल बा , स्थानीय भाषा संस्कृति आधारित रोजगार आ व्यवसाय के सिरजना बहुत जरुरी बा । मातृभाषा दिवस प बहुत बहुत बधाई आ शुभकामना ।  भगवान शिव भोजपुरिया लोगन के भोजपुरी में लिखे पढे के सदबुद्धि देसु ।


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