जब तू था
तब भी खुदा था
जब मैं हूं
तब भी खुदा है
तू साथ रहता है
ताे जन्नत सी ज़िन्दगी हाेती है
तू अलग दिखता है ताे
बेरूख जमीं लगती है
काश! हम दाेंनाे के मयखाने हाेते
गम क्या है
भुलाने के ठिकाने हाेते
जम कर माेहब्बत की
यूं नुमाईश ना करते
अन्ज़ान पीर परायाें की
रब से ख्वाहिश ना करते
तू भी हाे सकता खफा
हम भी रह सकते जुदा
जिन्दगी ही ना हाेती
ताे जाेर आजमाईश ना करते
---शिवम् मञ्जू
(फ़िराेज़ाबाद)