ना उम्मीद बची, ना आस...?
है! प्रेयसी क्यूँ सबसे खाश।
इक दिन सोचा मन ने मेरे
जन्म दिया जब माँ ने पालन-पोषण बाप
दुख मे साथ दिया भाई ने
बहन ने हिम्मत और विश्वास।
फिर क्यू करता दिल-ए-रमन,
किसी बेगाने की तलाश। क्यूँ.....?
बेगाना है खाश।
गूँज रहा है मन मे मेरे
बात अहम सी हो कुछ खाश।
क्यु एक नजर मे प्यार हुआ ,
क्यू एक नजर मे विश्वास
बिन देखे उसको क्यू होता
तड़पन का एहसास।
सिर्फ नजर से कैसे बनाया
जगह वो दिल मे खाश।
माँ तो रहती हर पल हर क्षण,
रोज हमारे साथ .....।
फिर भी उसकी याद दिलो के,
नही है उतनी पास।
जितनी प्रेयसी के धडकन का
करता यह एहसास।
क्यू नाचीज ये दिल ना समझता
माँ की बाते और जज्बात।
भूल है जाता हर गम माँ के
पर प्रेयसी का रहता याद
बदल गया है :"रमन"समय ये
माँ से मुकम्मल प्रेयसी आज
माँ के संग मुफलिस है रहता।
प्रेयसी करती महल पर राज
माँ भूखी रह गुजारा करती
बेटे से ना कहती बात
मौत इबादत मे माँगे पर
बेटे पर है फिर भी नाज।
-नीरज कुमार रमन
8887650824
परशुरामपुर सुल्तानपुर
उत्तर प्रदेश