अब छोड़ो निराशा के विचार को

 



क्या है लोकतंत्र हैं जाे अब छोड़े निराशा के विचार को


अधिकार की बात ना कराे समझों कर्तव्य के भार को


भुला न पायेगा काल, प्रचंड एकता की आग को


शान से फैला तिरंगा क्या हम बढ़ा पायेंगे इसकी शान को


गुजरेगा वक्त भले, पर मिटा ना पायेगा देश के आन को


ऐसी उड़ान भरेंगे, दुश्मन भी होगा मजबूर, ताल बजान को


कंधे से कंधा मिलाकर, मजबूत करें भारत के आधार को


इंसानियत ही है सबसे ऊँची बस याद रखें, मॉ भारती के त्याग को


पाखंडियाें काे दुत्काराें, प्रेम करें हर एक इंसान को


देश हैं हम सबका, बस समझे कर्तव्य के प्राण को


नव युग हैं आ गया, अब छोड़ो निराशा के विचार को


---शिवम् मञ्जू
    (फ़िराेज़ाबाद)


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