आबरू

 


आज खुद से रूबरू जो हुई
 आईने के सामने 
सोचने पर मजबूर हो गई
 आईने के सामने ....
एक नन्हीं से चिड़िया थी 
बाबुल के आंगन की 
आज उड़कर .....
कहीं और बस गई हूं 
जो उड़ती थी उस पंख से 
कोई तोड़ ना दे ....
मेरी आबरू ही 
अभिमान है मेरा ...
मेरे पिता का सम्मान ही
 मान है मेरा ......
कोई कुंठा कोई दुख
 मेरे हृदय में मत बसने देना ..
कुछ कर सको या ना
 मेरी आबरू को बचे रहने देना...
 मेरी त्याग मेरी ममता को
 निर्जीव ना समझना ...
मेरी आबरू ....
तुम्हारे अस्तित्व का आधार है 
यह खुद को भूलने ना देना...
 मैं जननी हूं 
कहीं ना कहीं मुझसे ही...
 तुम्हारी पहचान है
हर रूप में स्वीकार कर
 मुझे सम्मान देना....


      दीपमाला पांडेय


Popular posts
सफेद दूब-
Image
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
अभिनय की दुनिया का एक संघर्षशील अभिनेता की कहानी "
Image
बाल मंथन इ पत्रिका का ऑनलाइन विमोचन
Image
अभियंता दिवस
Image