काँख लेवा हाथ लाठी, सुतन चले मचान।
चार चोर रहिया भेंटले, संगे लीहलें टान।।
कुच अन्हरिया टेढ़ डगरिया, थमले पिछुवार।
निसबद रात साँय साँय बात,निकसल अउजार।।
मोट देवाल माटी ढ़ेर, थकलें टेर टेर,
सुनऽ साथी बनऽ संघाती,छंइटी आनऽ हेर।
बुद्धि के मोट उठइले घेंट,गृहस्थ के जगइलें।
सेन्ह के माटी बिगेला, छंइटी दी फरमइलें।।
गृहस्थ उठ दीहलस कूट, उहो चारो धरइलें।
भकभेलरा कारने सभनी, हिकभर कूटइलें।।
नीक के फल नीके होला, बाउर के बाउर।
ता दिन से चोरउ लो चोरी ना कइल आउर।।
घरे राख बुड़बक के, चतुरा भेजीं बन में।
सब बात कहऽ मत पैनाली,गुणऽ अपना मन में।।
दिलीप पैनाली
सैखोवाघाट
असम
9707096238