समीक्षक जयप्रकाश मिश्रा वरिष्ठ साहित्यकार
शिवहर बिहार
ख्यातिप्राप्त कवयित्री तथा लेखिका किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा" की पुस्तक "परिणीता प्रेम" साहित्य जगत में एक मूल्यवान कृति है ।यह 121 कविताओं का अनूठा संग्रह है ।प्रेम रस की कवयित्रियों में किरण मिश्रा का नाम बड़ी शालीनता से लिया जाता है ।ये बड़ी शिष्टता से अपने विचारों को प्रकट करती हैं ।वे प्रायः छंदबद्ध कविताएँ लिखतीं हैं लेकिन अतुकांत कविताओं पर भी इनकी गहरी पकड़ है।इसका ताजा उदाहरण "परिणीता प्रेम " है।इनकी रचनाएँ बड़ी सशक्त होती हैं ।यह पुस्तक इश्क हकीकी (ईश्वर से प्रेम) की अनुपम अभिव्यक्ति है।वसीयत नामक शीर्षक कविता में कवयित्री ने श्रीकृष्ण के प्रति सम्पूर्ण समर्पण का इज़हार किया है-
मेरा मन,मेरा शरीर
मेरी आत्मा,
अपने पूरे होशोहवास में
तुम्हें अर्पित करती हूँ ।
इस पुस्तक की तमाम कविताओं में कवयित्री ने श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम का जो इज़हार किया है वह शायद ही कहीं यन्यत्र पढ़ने को मिले। कहीं-कहीं इस पुस्तक में कवयित्री ने बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है ।ईश्वर को मानने पर खुद को खोना पड़ता है अपने अहं की कुर्बानी देनी होती है वैभव तथा विलास की राहें छोड़नी होती है ।तभी तो कवयित्री ने लिखा है -
तेरी यादें लिए फिरती,जहाँ में मारी-मारी-सी
हुए सब ख्वाब हैं तेरे,हुई नींदें तुम्हारी-सी
भारतीय दर्शन मुख्य रूप से दो धाराओं में बँटा हुआ है ।द्वैतवाद और अद्वैतवाद।साधारण शब्दों में कहें तो द्वैतवाद ईश्वर और जीव आत्मा का पृथक-पृथक अस्तित्व स्वीकार करता है जबकि अद्वैतवाद ईश्वर और आत्मा को एक ही मानता है कवयित्री की कविताओं में भारतीय दर्शन की झलक भी देखने को मिलती है।यहाँ कवयित्री की ये पंक्तियाँ ध्यातव्य हैं-
ज़िस्म से रूह तक,
धड़कन से स्पंदन तक,
नेत्र से ज्योति तक,
त्वक् से सिहरन तक,
अनछुई फिर भी
महसूसते,
अद्भुत, अकल्पनीय,
अनोखी,
तुम्हारी अनुभूतियाँ,
परिणित हो चुकी हैं,
मुझमें, तुम बन,
और मैं, मेरा मन
मेरी आत्मा,
मेरी चेतना,
स्वाँस सब अब,
तुममें एकाकार हो,
गा रहें हैं!
"परिणीता प्रेम " की,
"प्रेमिल प्रेम" कविताएँ!
तुम सुन रहे हो श्याम••••!
(पृष्ठ-24)
"परिणीता प्रेम " साहित्य जगत की अमूल्य धरोहर है ।इन कविताओं में जिन शब्दावलियों का प्रयोग कवयित्री द्वारा किया गया है उसे देखकर इस कविता का संकलन का शीर्षक "परिणीता प्रेम " बहुत ही उपयुक्त है ।प्रेम की अद्भुत मिसाल इस संकलन में बिखरी पड़ी हैं ।कवयित्री के प्रेम से आस्था का कवयित्री रूप सामने आता है । जगह-जगह इन कविताओं में कवयित्री प्रेम की शीतलता बरसाती दिखाई देती हैं ।किरण मिश्रा की कविताओं में राग तथा प्रेम की धूनियाँ सुलगती नजर आती है ।इसलिए किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा" जी प्रेम की कवयित्री के रूप में अपनी पहचान बनाती नजर आती हैं । हम इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं ।कुल मिलाकर यह पुस्तक पठनीय तथा संग्रहणीय है।
पुस्तक का नाम- परिणीता प्रेम
कवयित्री- किरण मिश्रा स्वयंसिद्धा
मूल्य- 299 रुपये मात्र