प्रस्तुत है एक छोटी सी कहानी  : हकीकत या बहाना

 



रंजना शर्मा

बिस्तर पर निढाल पड़ी प्रतीक्षा की आंखो से नींद जैसे कोसों दूर थी। जिन्दगी की हकीकत उसे आगे की ओर  खींच रही थी जबकि कुछ यादें बरबस ही उसके पांवों को पीछे धकेल रही थी
"तुम अपना ध्यान रखना और पढ़ाई अपनी पढ़ाई किसी कीमत पर भी डिस्टर्ब मत होने देना ।"
विशाल ने नम आंखों से प्रतीक्षा की ओर देखते हुए कहा।
           बार बार उसकी आंखें विशाल की आंखो को जैसे पढ़ने की कोशिश कर रही थी।
"क्यों???? क्या हुआ ???"
प्रतीक्षा ने बहुत प्रयास करते हुए कहा ।
"मेरा मोबाइल हैक हो गया है और कोई है जो हमारी हकीकत जानने की कोशिश कर रहा है इसलिए मैं अब तुमसे कान्टेक्ट नहीं कर पाऊंगा "विशाल ने प्रतीक्षा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा ।
...एक विशाल ही ऐसा था जो उसके नाश्ते से लेकर दवा तक का पूरा ध्यान रखता था और प्रतीक्षा ने भी कब उसे अपनी छोटी बड़ी हर बात में शामिल कर लिया उसको पता भी न चला ।
   शून्य में घूरती प्रतीक्षा के जेहन में उसकी हर बात एक बिच्छू की तरह डंक मार रही थी कि कैसे उसने सालों पहले विशाल को भी इसी तरह बीच सफर में छोड़ा और खुद जिन्दगी की नाव में सवार होकर कितना आगे निकल आई तब कैसा लगा विशाल को ।
    "क्या मोबाइल हैक होने से जिन्दगी रुक जायेगी,क्या वो इसी तरह सबसे सम्बन्धों को विराम दे देगा??..क्या किसी से बात नहीं करेगा...अभी अभी तो वो ज़िन्दगी जीना शुरू किया था उसने तबतक ये...अभी तो उसकी आंखों में थोड़े सपने पलने शुरू हुए थे ,तब तक ...."
मैं तुमको कभी दुख नहीं दूना चाहता... हमारा मिलन शायद शापित है ,तुम अपना ध्यान रखना... शायद अब हमारा मिलना कभी न हो …"
एक एक शब्द जेहन में जैसे बज्रपात कर रहा हो फिर भी खुद को सम्भालते हुए प्रतीक्षा ने हां में सर हिलाते हुए "…तुम भी विशू.. मैं सब जानती हूं..."
लगातार अपने आंसुओं को छिपाते हुए प्रतीक्षा ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया ।
      "क्या विशाल का मोबाइल सच में हैक हुआ या वह उसे वह तड़प दिखाना चाहता था जिसे बर्षों पहले उसने खुद झेला था।..
या कहीं ..वह उसके जीवन से वास्तव में दूर जाने का बहाना लेकर आया था.....या वो कहीं किसी मुसीबत में नहीं पड़ गया...
या फिर किसी की कसम ने उसे यह कदम उठाने पर मजबूर कर दिया.....बरना....ऐसे कैसे.....
"
सोचते सोचते उसके दिमाग और दिल में द्वन्द्व में छिड़ गया और दिमाग की नसें जैसे फटने को तैयार थी और उसका तकिया आंसुओं से इतना गीला हो गया जैसे किसी ने बाल्टियों पानी डाल दिया हो और अतीत में झांकते हुए आधी रात के तक रोजाना इसी तरह सोचते सोचते नींद कब अपने आगोश में कब लें लेती उसको पता ही न चलता ...



सर्वाधिकार सुरक्षित
स्वरचित 
20/11/19
उत्तर प्रदेश


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