जिंदगी प्रश्नचिन्ह बनकर आ गई
हर तरफ अंधेरे की लहर छा गई।
एक किरण सी आंखें चुंधिया गईं,
लगा कोई रोशनी जीवन में आ गई।
कुछ खुशियां भ्रम बनकर आईं,
कानों में गूंजी ऐसी शहनाई।
कि हर आवाज को दबा गई,
सूनापन ले जिंदगी फिर आ गई।
प्रश्नचिन्ह से क्यों तुम हो गए,
क्यों तुम्हारे शब्द मौन हो गए?
क्यों धड़कनों को ना सुन पाए,
क्यों आंसुओं को ना चुन पाए?
दर्द की आंधी फिर क्यों आ गई?
क्यों जीवन नौका फिर डुबा गई?
लहर गम की नाव पर क्यों छा गई,
क्यों समंदर की गहराई फिर भा गई ?
है प्रश्न अनंत मुझको घेरे हुए,
जो लगे अपने ना कभी मेरे हुए।
बोलते थे कि लो हम तेरे हुए,
साये थे वो कुछ कहां मेरे हुए।
कौशल बंधना पंजाबी।(स्वरचित)