ओकरे भएस


 


घर -घर नाली, घर-घर गएस।
जेकर लाठी , ओकर भएस ।।
बनी  पकऊरा ,  बनी चाय ।
इसकुल कउलेज,भाड मे जाए।।
छोट आमदी मे , मन के बात।
उधोग पति मे,  धन के बात ।।
घर -घर सेपटीक ,बोतल जाए।
भरपेट खाना  ,केहू ना खाए।।
आपन वेतन  , खुब बढाई।
कर्मचारी मांगे तबआख दिखाईं। 
जारी  रख,  आपन तु पेन्सन।
दोसरे के दअ , तु खुबे टेन्सन।।
बाह रे शासन , तहार गजबे खेल।
न्याय मंगनी त,  कईलख जेल।।
होत गलती मे, "साधु जी"बोलले।
कुदी  के  इ , परदा  खोलले।।


शैलेन्द्र कुमार साधु 
पं० महेन्द्र मिश्र के मिश्रवलिया 
जलालपुर, सारण, बिहार 
संपर्क- ९५०४९७१५२४


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