कुव्वत

 



हेमा पांडेय


वन पर्वत नदी 
सबके मिजाज है
पशु पखेरू के 
अपने अंदाज है।
इनका मेला पृकृति के 
आंगन में लगता है।
हर मौसम में
झूमता झूलता
कोई सीढियां लेकर
नही आता पेड़ो पर
फूल रँगने
न फल लटकाने
आसमान के पर्दे पर कोई
प्रोजेक्टर तसवीर नही फेकता
नदी कौन नल सी आती जाती है
अपने में मग्न रहते है सब
अटखेलियां करते।
जब हरियाली के जंगल में
बारिश होती है तो 
पत्ते बजते है।
पँछी पुकारते है 
बूदें पत्तियों की फिसलपट्टी पर
फिसलती घास पर
किलकती कूदती है।
पारस के आगमन पर
बूदों की पायल पहने
जब वन नाचता है
तो लगता है
ईश्वर स्वम हर वृक्ष के सिर पर
हाथ रख कर आशीष दे रहे हों
प्रकृति के वरदान सम्भाल सकें
इतनी कुव्वत इंसान में नही।


हेमा पांडेय


Popular posts
सफेद दूब-
Image
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
अभिनय की दुनिया का एक संघर्षशील अभिनेता की कहानी "
Image
बाल मंथन इ पत्रिका का ऑनलाइन विमोचन
Image
अभियंता दिवस
Image