नाम--कुसुम शर्मा
पति--विश्वास चन्द्र शर्मा
पिता--स्व.मनोहर लाल
माता--स्व.कमलादेवी शर्मा
शिक्षा--M A हिंदी साहित्य,समाजशास्त्र,आर्ट्स ,बी.एड
सम्प्रति--शिक्षिका(UDT)शा. हा. से.स्कूल बघाना नीमच
रुचि-कला,और लेखन,किचन में नित नए प्रयोग,सिलाई कढ़ाई
सम्मान--लेखन मंचो पर अनेक सम्मान,श्रीमान जिलाधीश महोदय द्वारा साहित्यिक योगदान हेतु सम्मानित,ब्राह्मण समाज द्वारा सम्मानित,शीर्षक साहित्य परिषद की राष्ट्रीय सलाहकार
चार साझा संकलन में हिस्से दारी,एक एकल संकलन की तैयारी,दोहा दर्श में साझेदारी अनेक पत्र पत्रिकाओं में समय समय पर गजल ओर लघुकथा प्रकाशित।
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#विधा 👉 गीत
मानवता का खून किया था अब दहशत फैलाते हो!
जात पात के झगड़ों का ये मानव वंश बढाते हो!
साम्प्रदायिकता हठधर्मिता भी कब तक राज करेगी
रक्त बहाकर ये अपनों का, अब क्या श्रंगार करेगी
मानव जब जब भी हुआ दानवी सर्वनाश होता है
विध्वंस समाज का ढांचा होता जनगणमन रोता है
सेवा की आड़ लिए, उनसे बस अधर्म करवाते हो!
और चलाओगे कब तक तुम बोलो अपने वंश चलन
कब तक करते रहोगे ऐसे संस्कार का दुखद दमन
रत्न प्रसविनी मात धरा को अब तो मत बदनाम करो
खुद समझो और समझाओ अब सभ्यता का मान करो
मनमानी का ये क्यों अंग्रेजी व्यापार चलाते हो!
बहे झरने उड़ती खुशबु मगनमन खुशियाँ मनाने में
यही होता अगर मिलजुल कर रहे होते जमाने में
बुरा क्या है दिए गर प्रेम के प्रज्ज्वलित करते हम तुम
एक दूजे की थाम के बाहें आगे बढ़ते तुम हम
प्रेम छीनकर यूँ नफरत की क्यों अब फसल उगाते हो!
कुसुम शर्मा नीमच मध्यप्रदेश
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित