कौन इसे समझे

 



 


कितनी बातें  सुनती हूँ मैं
कितनी पीड़ा सहती हूँ मैं
फिर कुछ   लिखती हूँ मैं
कौन इसे समझे ?
बूँद बूँद   लाया   है   कैसे
फिर उसको बरसाया कैसे
यह तो घन समझे।
कौन इसे समझे?
हम तो देखें हरियाली ही
पानी पानी बस पानी ही
घन कितना तरसे।
कौन इसे  समझे? 
अधरों पर मेरी मुस्कानें
कितनी वेदनाएं  थकानें
कब नैन मेरे बरसे?
कौन इसे समझे?


 


डा. ज्ञानवती दीक्षित


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